महिषासुर वध से हम क्या सीख सकते हैं?

आचार्य प्रशांत: अब हम तृतीय अध्याय में प्रवेश करते हैं। जहाँ पर दूसरे अध्याय का समापन है, तृतीय अध्याय वहीं से आगे बढ़ता है। तो युद्ध चल रहा है विकराल, और एक के बाद एक दैत्य सेनापति आ करके देवी से संघर्ष कर रहे हैं।

चिक्षुर नाम का असुर आता है जो कई तरीके से संग्राम करता है और अंततः देवी के शूल से उसकी मृत्यु होती है। फिर उसके बाद चामर नाम का दैत्य आता है, वह संघर्ष करता है। देवी का सिंह उस चामर के हाथी के मस्तक पर चढ़ बैठता है और उसको मारता है और अंततः चामर का वध भी सिंह ही करता है।

“सिंह बड़े वेग से आकाश की ओर उछला और उसने गिरते समय पंजों की मार से चामर का सिर धड़ से अलग कर दिया।”

फिर कराल नाम का दैत्य आता है, और भी दैत्य आते हैं।

“क्रोध में भरी हुई देवी ने गदा की चोट से उद्धत का कचूमर निकाल डाला। भिन्दिपाल से बाष्कल को और बाणों से ताम्र और अंधक को मौत के घाट उतार दिया। तीन नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्रास्य, उग्रवीर्य तथा महाहनु नामक दैत्यों को मार डाला। तलवार की चोट से बिडाल के मस्तक को धड़ से काट गिराया। दुर्धर और दुर्मुख, इन दोनों को भी अपने बाणों से यमलोक भेज दिया।”

तो इस तरह से महिषासुर की पूरी सेना का संहार हो रहा है। देवी के सामने एक से बढ़कर एक दैत्य आ रहे हैं और देवी किसी को गदा से, किसी को बाण से और किसी किसी को तो बस घंटे की नाद से धराशायी कर रही हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो देवी से थप्पड़ खाकर मर रहे हैं। तो ये सब चल रहा है कार्यक्रम।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org