महिला घर और दफ्तर एक साथ कैसे संभाले?

देखिए— “एक महिला होकर घर और कार्यस्थल में समुचित तादात्म्य कैसे बैठाया जाए,” तो आप शायद अपनी पहचान के भीतर से ये सवाल कर रही हैं। आपने सवाल करते वक्त ही ये तय कर लिया है, ये शर्त रख दी है, कि महिला होने की जो पुरानी, परंपरागत, तयशुदा परिभाषा है, उसका तो मुझे सम्मान करना ही है।

समझिएगा, जब आप कहती हैं कि आप महिला हैं, तो आपका आशय लिंग से नहीं है; आपका आशय एक धारणा से है। अंतर समझ रही हैं? लिंग तो जीव का होता है; लिंग तो शरीर का होता है। जब आप कहती हैं कि आप महिला हैं, तो आप ‘शरीर’ की नहीं ‘मन’ की बात कर रही हैं। आप महिला होने की छवि की बात कर रही हैं।

समाज ने, परंपरा ने, महिला की जो परिभाषा आपको दे दी है, आप उस परिभाषा के भीतर से बात कर रही हैं, है न?

इसीलिए तो ये सवाल उठ रहा है, अन्यथा ये सवाल ही ना उठे।

सबसे पहले तो मैं ये निवेदन करूँगा कि एक दायरे के भीतर से अगर आप सवाल करेंगे तो आप दायरे से बाहर नहीं आ पाएँगे। सबसे पहले तो अपने आपसे ये पूछना होगा कि वास्तव में आवश्यक है क्या महिला की उस छवि को कायम रखना और उसी छवि के अनुसार जीवन बिताना जो हमें अतीत से मिली है, समाज से मिली है?

मैं कहूँगा, पूछिए कि आवश्यक है क्या अपने आपको ‘महिला’ की तरह देखना? व्यक्ति मात्र क्यों नहीं हो सकतीं आप? और अगर आप व्यक्ति पहले हैं, महिला बाद में हैं, तो समीकरण बिल्कुल बदल जाते हैं फिर क्योंकि ‘महिला’ होना तो थोड़ी शरीर की बात हो गई और थोड़ी समाज की बात हो गयी, ‘व्यक्ति’ होना कुछ और बात हो गई।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org