महत्व देना और प्रेम करना

प्रेम का मतलब होता है कीमत देना किसी चीज़ को; तुम कीमत देना जानते ही नहीं।

तुम्हारे लिए तुम्हारे ये छोटे-छोटे दुर्गुणों की और दुर्गंधों की ही बहुत कीमत है; तुम इन्हीं में लिपटे रहते हो बस। कुछ है जो तुमसे बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है और उसकी बहुत बड़ी कीमत है, ये तुम्हें समझ में ही नहीं आता। तुम्हें लगता है जैसे तुम हो, वैसे ही दुनिया के सब काम हैं — मूल्यहीन। “सच लवलेस पीपल!

तुमने एक चीज़ जो छह महीने पहले हो सकती थी उसे छह महीने विलम्बित करा दिया, तुम मुझे बताओ ये छोटी-सी भूल कैसे है? तुमने छह दिन भी अगर उसमें देर करा दी तो ये छोटी-सी भूल कैसे है? मुझे बताओ।

तुम्हें दवाई लाने भेजा गया था, तुम कतार नहीं तोड़ पाए, तुम कानून का पालन कर रहे थे, ये छोटी-सी भूल कैसे है? तुम काम पर गए थे, तुम समोसा खा रहे थे, ये छोटी-सी भूल कैसे है? महत्व ही नहीं समझ रहे न! महत्व देना और प्यार करना एक बात होती है बिलकुल, जानते हो न? प्यार उसी से कर सकते हो जिसको…

प्र: महत्व दे सकते हों।

आचार्य: और तो कोई प्यार के काबिल होता ही नहीं। और किस से प्रेम करोगे, किसी महत्वहीन चीज़ से?

मूल्य व्यवस्था ही विकृत है; समझते ही नहीं हो कि क्या महत्वपूर्ण है और क्या महत्वहीन है। जिस चीज़ की दो कौड़ी की कीमत नहीं उससे लिपटे रहते हो; जो असली चीज़ है उससे मुँह चुराते रहते हो। और उसी बेईमानी का नतीजा ये है कि चेहरे पर भय साफ दिखाई देता है; भय ही मौत है।

बिना बेईमानी के जी करके तो देखो। ठसक के साथ जीने का मज़ा दूसरा होता है; फिर मुँह छुपाते नहीं फिरना पड़ता, कि यहाँ से डर रहे हैं, वहाँ छुप रहे हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org