मरते समय श्रीकृष्ण का स्मरण करने से मोक्ष मिल जाएगा?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। मेरा प्रश्न गीता से सम्बंधित है। भगवान कृष्ण ने गीता में बोला हुआ है कि मरते वक़्त अगर मेरा स्मरण किया जाए तो वो मुझे ही प्राप्त होता है। और उसी गीता में उन्होंने बोला हुआ है कि मैं कण-कण में हर प्राणियों में वास करता हूँ। तो हमें किस रूप में उनका स्मरण करना चाहिए हर वक़्त ताकि मरते वक़्त भी हमें उसी का स्मरण रहे? उन्होंने ये भी बोला हुआ है कि मैं भी परम् अक्षर ओमकार का भी रूप हूँ। चंद्रमा में उनकी चाँदनी हूँ, सूर्य में ताप हूँ।

आचार्य प्रशांत: आप जिस श्लोक का उल्लेख कर रहे हैं, उससे ठीक दो श्लोक बाद श्री कृष्ण स्पष्ट कर देते हैं कि निरंतर उनका ध्यान करना है। आप सातवें या आठवें अध्याय के आरंभिक श्लोकों की बात कर रहे हैं।

प्र: उनका ध्यान किस रूप में करना चाहिए, वही मेरा प्रश्न है?

आचार्य: बता रहा हूँ। उनका ध्यान सबसे पहले तो ये समझना ज़रूरी है कि सिर्फ़ मृत्यु के वक़्त करने से काम नहीं चलेगा। क्योंकि गीता के जिस श्लोक की आपने बात करी, आदमी का मन उसका दुरुपयोग भी बड़ी आसानी से कर लेता है। कि भई ज़िंदगी चाहे जैसी भी चल रही हो, गीता ने ही सुझाया है कि आखिरी दम में मृत्यु के समय श्री कृष्ण का स्मरण कर लेना तो मोक्ष मिल जाएगा। नहीं, बात वो नहीं है। उससे आप ज़रा सा आगे बढ़िए, दो श्लोक आगे आइए। ये श्री कृष्ण स्वयं ही स्पष्ट कर देते हैं कि नहीं, निरंतर ध्यान करना है। निरंतर ध्यान जब करोगे, जीवन भर जब ध्यान करोगे तभी तो फिर मृत्यु के वक़्त भी ध्यान कर पाओगे। नहीं तो जीते-जी जिन बातों को तुमने सर पर चढ़ा रखा था, जो बातें लगातार मन में घूमती थी, मृत्यु के क्षण में भी वही बातें मन में घूमेंगी। तो ये पहली बात स्पष्ट हुई कि इस धारणा में नहीं पड़ जाना है कि बस…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org