मन से दोस्ती कर लो

प्रश्नकर्ता: सर, यह सोच तो लिया है कि “अभी जो है, सो है”, और इससे मन शांत भी होता है पर जैसे ही कुछ करने बैठता हूँ, कि बस यही है, तो एक-एक मिनट ऐसा लगता है जैसे ख़त्म ही नहीं हो रहा। जैसे हर एक मिनट अनंत हो। दिमाग को चाहिये कि बस कुछ ख़त्म हो जाये। कोई भी एक्टिविटी कर रहा होऊं, दिमाग जब तक दौड़ता नहीं है, तब तक चैन नहीं आता।

आचार्य प्रशांत: देखो, मन पालतू बन्दर जैसा है। बन्दर तो है, पर दोस्त है अपना। बन्दर है, इसमें उसकी कोई गलती तो नहीं; पैदा ही ऐसा हुआ है। उसके साथ बहुत कड़ाई नहीं करनी चाहिए। थोड़ी-सी उसको ढ़ील दे कर रखनी चाहिए। और जो तुम बोल रहे हो कि समय अनन्तता जैसा लगता है, ये अनन्तता नहीं है। बस यह है कि तुम्हें समय काटे नहीं कटता, अझेल है। इसमें कोई अनन्तता का भाव नहीं है, इसमें सिर्फ बोझिल होने का भाव है।

अब तुम बन्दर को बुद्ध थोड़ी ही बना लोगे। बन्दर तो बन्दर है, उसको थोड़ा खेलने-कूदने देना चाहिए, ठीक है? उसके साथ बहुत तानाशाह जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। बेचारा फिर सुस्त पड़ जायेगा। यह जो कई हठ-योगी हैं, यह वैसे तो शरीर को पूरा साध लेते हैं, लेकिन चेहरे पर कांति नहीं रह जाती।

मन का हक है, थोड़ा-सा इधर उछल लिया, उधर कूद लिया। बन्दर है, लेकिन अपना बन्दर है।

उसको यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि सर पर चढ़कर उपद्रव करे, घर में तोड़-फोड़ करे। पर ये भी ठीक नहीं है ना कि तुमने उसको इतनी सख्ती से बाँध दिया खम्भे से कि वो बेचारा अधमरा ही हुआ जा रहा है, ख़त्म ही हो गया है।

मन बन्दर ही रहेगा, मन नहीं योगी हो जाता।

हाँ, यह है कि तुम बंदर के साथ प्रेम से रहो, तो बंदर भी प्रेम की भाषा समझ जाता है। फिर वो भी धीरे-धीरे कुछ बातें ऐसी जान जाता है, जो वैसे नहीं समझाई जा सकतीं; प्रेम से जान जाता है।

तुम जो जान गए, समझ गए, अच्छी बात है, लेकिन मन, मन है। उससे ऐसी अपेक्षाएँ मत रखना जो वो पूरी नहीं कर सकता। और वो अपेक्षाएँ, पहली बात, पूरी नहीं की जा सकती। दूसरी बात, रखने से कोई लाभ भी नहीं है। क्या मिल जायेगा?

तुम बाँध लो मन को पूरे तरीके से कि “ये नहीं करेगा! वो नहीं करेगा!” चलो ठीक है। बाँध लो, पर उससे होना क्या है? हो तो तुम शरीर ही ना? संसार में ही हो ना? सूख जाओगे, झड़ जाओगे। तो अपनेआप को उपद्रव करने की भी एक स्वस्थ छूट देनी चाहिए। आपने आपको बेवकूफ बनने की भी छूट देनी चाहिए।

आत्मा, आत्मा है; मन, मन है। जीसस की उक्ति है कि, “जो राजा का है वो राजा को दो, जो ख़ुदा का है वो ख़ुदा को दो।” यह बात ज़रा विवेक की है। बन्दर को बादशाह नहीं बना देना है। घर के भीतर बादशाह बैठा है, बादशाह के आसन पर बादशाह ही बैठे; वो आत्मा है। पर…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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