मन सही लक्ष्य से भटक क्यों जाता है?
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पूरी दुनिया के सभी लोग छुपे हुए दर्द में ही जी रहे हैं।
अगर उन्हें अपने दर्द का एक प्रतिशत भी ज्ञान हो जाए, तो फूटफूट कर रो पड़ेंगे।
ये सब जो हँसते हुए, मुस्कुराते हुए लोग तुम्हें चारों ओर दिख रहे हैं, ये सब मुस्कुरा सिर्फ़ इसलिए रहे हैं क्योंकि इन्हें अपनी छाती के दर्द का कुछ पता नहीं है। ये संवेदनाशून्य हो गए हैं। इनके अंगों की संवेदना चली गई है।
ये पूरी दुनिया, ऐसा समझ लो, एनेस्थेसिया पर चल रही है, ताकि दर्द पता न चले। इसीलिए तो लोग इतने नशे करते हैं, तरह-तरह के। ज्ञान का, सम्बन्धों का, शराब का, दौलत का। ये सब एनेस्थेसिया है, ताकि तुम्हें तुम्हारे दर्द का पता न चले।
अपनी हालत को गौर से देखो तो, चित्त भटकना बंद हो जाएगा।
फिर एक ही चीत्कार उठेगा — “आज़ादी, आज़ादी। और कुछ नहीं चाहिए, बस आज़ादी। न बर्गर चाहिए, न जूता चाहिए, न लड़की, न लड़का, बस आज़ादी।”
जितने अँधेरे में तुम जिओगे, उतने तुम्हारे पास सपने होंगे।
ज़रा प्रकाश तो जलाओ।
हटाओ सपने, ज़िंदगी की हक़ीक़त देखो।
फिर बताना मुझे कि — क्या मन अभी भी इधर-उधर विचलित होता है, भटकता है?
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