मन में दो और दो कभी चार नहीं होता

आचार्य प्रशांत: इम्तिहान में आया है कि दो और दो कितना होता है। तो आप क्या करते हो? आप चार लिख देते हो, और उसके बाद आप रुक नहीं जाते।

प्रश्नकर्ता१: नेक्स्ट क्वेश्चन (अगला प्रश्न )।

आचार्य: हाँ, नेक्स्ट क्वेश्चन (अगला प्रश्न), और उसके बाद आप जब पर्चा वगैराह लिख करके आगे आ गए, आप रुक नहीं जाते।

प्र१: कन्फर्म (इस बात की पुष्टि) करते हैं।

आचार्य: कन्फर्म (इस बात की पुष्टि) करते हो। ठीक है — “दो और दो चार हैं”। फिर उम्मीद करते हो कि अब नंबर मिल जाएगा। तो आपने जो पूछा दो और दो कितना होता है, तो मैं बताता हूँ — टू प्लस टू प्लस कन्फर्मेशन प्लस होप इज़ इक्वल टू फोर (२ + २ + इस बात की पुष्टि + आशा = ४)सो (इसलिए), टू प्लस टू इज़ फोर माइनस कन्फर्मेशन माइनस होप (२ +२ = ४ — इस बात की पुष्टि — आशा)। कभी ऐसा हुआ है कि दो और दो चार हों बिना उम्मीद के? कभी ऐसा हुआ है? हम मन की बात कर रहे हैं न। मन में मात्र तथ्य तो कभी होते ही नहीं।

आपने यूँ पूछा जैसे दो और दो तथ्य हैं, मन में तथ्य कहाँ होते हैं? वह तो बहुत बड़ी काबिलियत है कि तथ्य दिखे — ट्री एस ट्री, टू एस टू, बर्ड एस बर्ड (पेड़, पेड़ की तरह; २, २ की तरह; चिड़िया, चिड़िया की तरह)। हमारी तो उम्मीदें जुड़ी होती हैं उनके साथ। दीवार कभी दीवार नहीं होती, दीवार कहीं की दीवार होती है, दीवार किसी ख़ास पेंट से पुती हुई दीवार होती है। कपड़ा कभी कपड़ा नहीं होता, वो किसी ना किसी ब्रांड का कपड़ा होता है, किसी ना किसी का कपड़ा होता है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org