मन में तो साकार राम ही समाएँगे

जानें जानन जोइए

बिनु जाने को जान।

तुलसी यह सुनि समुझि हियँ

आनु धरें धनु बान।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: जान कर के जान जाएँगे आप और बिना जाने कौन जानेगा? तुलसी खेल रहे हैं, मानो चुनौती-सी दे रहे हैं। कह रहे हैं- अब ये सुनो और समझो और फिर हृदय में धनुर्धारी राम को स्थापित करो। “जो जानता है सिर्फ वही जानता है, बिना जाने कौन जानता है?” तुलसीदास जापान गये नहीं, नहीं तो हम मानते की ‘ज़ेन’ की विधिवत शिक्षा ले कर आए थे। पहेलियाँ बुझा रहे हैं, ‘क्वान’ हैं- “जो जानता है बस वही जानता है और जिसने जाना नहीं वो क्या जानेगा।” ये जानकर के, ये सुनकर, समझ कर हृदय में धनुर्धारी राम को स्थापित करो। दूसरी पंक्ति पहले पढ़िए, पहली समझ में आ जाएगी।

राम दो हैं। पहले ये जानना होता है फिर ये जानना होता है कि ये दोनों राम एक हैं। एक राम वो हैं जिनका शरीर था, जिन्होंने जन्म लिया, जिन्होंने जीवन जिया, जिन्होंने लीला खेली, जिन्होंने युद्ध लड़ा, और फिर एक दिन जो सशरीर विदा भी हो गये और एक राम वो हैं जिनको तुलसी कहते हैं कि-

तुलसी भरोसे राम के निर्भय होकर सोए।

अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय।।

ये दोनों राम जिस तल पर भिन्न हैं उस तल को जानना जरूरी है फिर जिस तल पर एक हैं उसको आप समझ जाएँगे। सत्य जब भी आविर्भूत होता है, किसी के लिए होता है। आप जैसे हैं आपको वैसा ही चाहिए अन्यथा आप बात नहीं कर सकते। सारी बात किसी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org