मन में तो साकार राम ही समाएँगे
जानें जानन जोइए
बिनु जाने को जान।
तुलसी यह सुनि समुझि हियँ
आनु धरें धनु बान।।
~ संत तुलसीदास
आचार्य प्रशांत: जान कर के जान जाएँगे आप और बिना जाने कौन जानेगा? तुलसी खेल रहे हैं, मानो चुनौती-सी दे रहे हैं। कह रहे हैं- अब ये सुनो और समझो और फिर हृदय में धनुर्धारी राम को स्थापित करो। “जो जानता है सिर्फ वही जानता…