मन‌ ‌ब्रह्म‌ ‌को‌ ‌कैसे‌ ‌जाने?

आचार्य प्रशांत: कौन से श्लोक हैं, जिसपर बात करें?

प्रश्नकर्ता: पहला खण्ड, पाँचवा श्लोक, केनोपनिषद।

यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम्।

तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥५॥

(केनोपनिषद, खण्ड १, श्लोक ५)

हिंदी अनुवाद: मन से जिसका मन नहीं किया जा सकता; अपितु मन जिसकी महत्ता से मनन करता है, उसी को ब्रह्म समझो। मन द्वारा मनन किए हुए जिसकी लोग उपासना करते हैं, वह ब्रह्म नहीं है।

इसमें कई बार ब्रह्म, वो भी जो, समझते करते हैं, वो भी मन के द्वारा ही चल रहा है तो ये कैसे पता लगाएँ? कैसे पता चले? अब इसको पढ़ने के बाद तो और ज़्यादा इसपर ध्यान जा रहा है, ज़्यादातर समय तो मन के रास्ते से ही ब्रह्म को समझते हैं।

आचार्य: मन रास्ता है, मंज़िल नहीं है, मन रास्ता है और मन रास्ता ही रहेगा। मन का काम है चलना, चलने का अर्थ है रास्ता। मन रास्ता ही रहेगा, मन मंज़िल नहीं हो सकता। समझ में आ रही है बात?

जब तक अभी सोच रहे हो, चाहे ब्रह्म के ही बारे में ही क्यों न सोच रहे हो तो ब्रह्म को नहीं जाना। ब्रह्म को नहीं जाना, अभी सोच ही तो रहे हो, हाँ, लेकिन मन सोचने के काम ज़रूर आ सकता है। यदि सोचना इस तरह का हो कि जल्दी ही थम जाए, एक बिंदु पर आकर रुक जाए, तो ठीक है।

ये मत कहो कि, हम मन के माध्यम से जानते हैं, मन ही है जो अपने माध्यम से जानता है। तुम मन के अतिरिक्त क्या हो? तो उसके पास कोई और तरीका नहीं है, वो तो सोचेगा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org