मन प्रशिक्षण के अनुरूप ही विषय चुनेगा

तुम कब कहते हो कि मन एकाग्र है? जब तुमने एक विषय चुना है और वो किसी दूसरे विषय में न बदले।

मन तो एकाग्र होता ही है, कोई समस्या नहीं है, लगता हमें यही है कि एकाग्रता समस्या है।

कोई फ़िल्म देखने, क्रिकेट देखने जाते हो तब देखा है कितने एकाग्रचित्त होकर देखते हो? क्या तब तुम यह शिकायत करने आते हो कि एकाग्र नहीं कर पा रहें है?

मन के पास अपनी कोई रुचियाँ नहीं होती है। एकाग्रता प्रश्न है ही नहीं, प्रश्न यह है कि हमने मन को क्या सिखाया है, कि जीवन में क्या महत्वपूर्ण है? तुमने मन को जो भी सिखाया होगा कि यह महत्वपूर्ण है, मन वहीं पर जाकर के बैठ जाता है।

जीवन में और सब चीज़ों से ज़्यादा ‘ज्ञान’ महत्वपूर्ण है, जिस किसी ने पूरी गहराई से यह माना होगा कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण ‘ज्ञान’ है, उसको तो एकाग्रचित्त होते देर ही नहीं लगेगी।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org