मन पर चलना आज़ादी नहीं
दो तरह की गुलामी होती हैं।
एक गुलामी होती है, बड़ी सीधी। वो ये होती है कि कोई तुमसे कहे कि — “चलो ऐसा करो।”
“चलो, ऐसा करो” — ये गुलामी मुझे साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है, कि मुझे कहा गया तो मैंने किया। पर ये गुलामी बहुत दिनों तक चलेगी नहीं। क्यों? क्योंकि दिख रही है साफ़-साफ़ कि कोई मुझ पर हावी हो रहा है। तो तुम्हें बुरा लगेगा, और तुम बचकर चले जाओगे।