मन पर चलना आज़ादी नहीं

दो तरह की गुलामी होती हैं।

एक गुलामी होती है, बड़ी सीधी। वो ये होती है कि कोई तुमसे कहे कि — “चलो ऐसा करो।”

“चलो, ऐसा करो” — ये गुलामी मुझे साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है, कि मुझे कहा गया तो मैंने किया। पर ये गुलामी बहुत दिनों तक चलेगी नहीं। क्यों? क्योंकि दिख रही है साफ़-साफ़ कि कोई मुझ पर हावी हो रहा है। तो तुम्हें बुरा लगेगा, और तुम बचकर चले जाओगे।

एक दूसरे तरह की गुलामी होती है।

ऐसे समझ लो कि, एक गुलामी यह है कि मैं एक सॉफ्ट-ड्रिंक (पेयजल) बनाता हूँ। मैं एक सॉफ्ट-ड्रिंक मैन्युफैक्चरर हूँ, और मुझे उस ड्रिंक का उपभोग बढ़ाना है। तो मैं एक ये तरीका इस्तेमाल कर सकता हूँ कि मैं तुम्हें आदेश दूँ, और कहूँ कि — “चलो, ये सॉफ्ट-ड्रिंक पियो।” पर ये तरीका मेरे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध नहीं होगा। क्यों? क्योंकि कोई भी चाहता नहीं है गुलाम होना। और ख़बर फ़ैलेगी, लोग बचने लगेंगे, मेरे सामने नहीं आएँगे। या कह देंगे कि, “हम पी लेंगे,” और पीएँगे नहीं।

यही सब होगा !

अगर मैं ज़रा-सा चालाक हूँ, तो मैं एक दूसरी विधि अपनाऊँगा। मैं ये नहीं बोलूँगा तुमसे कि — “चलो ये सॉफ्ट-ड्रिंक पियो।” मैं तुम्हारे मन में एक चिप फिट कर दूँगा, और उसमें लिखा होगा, “सॉफ्ट ड्रिंक पियो।” और फिर तुम खुद बोलोगे, “मेरा मन है सॉफ्ट ड्रिंक पीने का, मैं पी रहा हूँ।” और अब अगर कोई तुमसे आकर कहेगा भी कि, “ये गुलामी है,” तो तुम कहोगे, “नहीं, ये गुलामी नहीं है। मेरा मन कर रहा है। और तुम मेरे दुश्मन हो, अगर तुम मुझे रोक रहे हो, मेरे मन की बात करने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org