मन पर कैसे काबू पाएँ?

कौन है जो मन को काबू में रखना चाहता है? ये ‘मैं’ कौन है जो मन को काबू में रखेगा?

जिसे तुम काबू में रखना चाहते हो वो तुम्हारी छाया है, तुम जैसे हो वो वैसी है, तुम उसे काबू में कैसे करलोगे?

मन ‘मैं’ का मौसम है, मन ‘मैं’ के इर्द-गिर्द की गतिविधि है। ‘मैं’ जैसा होगा उसके इर्द-गिर्द की गतिविधि भी वैसी होगी, उसका नाम मन है। मन निर्धारित ही इस बात से होता है कि तुमने अपने आपको क्या समझ रखा है, क्या बना रखा है, ‘मैं’ ने किससे आसक्ति जोड़ रखी है। तुम अपने आपको अगर गलत समझते हो तो मन ठीक कैसे हो जाएगा?

तुम बदल जाओ, मन बदल जाएगा।

मन से आश्रय है, चेतना, भीतर से जो भावना उठती है, विचार उठते हैं, प्रतिक्रियाएँ उठती हैं, इन्हीं सबको तुम मन कहते हो। तुम ये देख ही नहीं रहे कि ये विचार सारे किसको उठते हैं। अगर तुमनें अपनी परिभाषा ही यही रखी है कि मैं वो हूँ जो कमजोर है, जिसको सहारे की, सुरक्षा की ज़रूरत है तो मन का माहौल हमेशा भय का रहेगा।

तुम अपने आपको कुछ बना करके जीवन में घूमते हो, और जो कुछ भी तुमने अपने आपको बना रखा है, वो तुम्हारे लिए परेशानी का ही कारण बनेगा। अध्यात्म है तुम्हें समझाने के लिए कि या तो अपने आपको पूरा कर दो या अपने आपको खत्म ही कर दो। इन्हीं दोनों स्थितयों में तुम्हें पहचानों से मुक्ति मिलेगी। अधूरे ‘मैं’ को कहते है अहम्, पूरे ‘मैं’ को कहते है, आत्मा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org