मन तो उलझा है, दिल फिर भी सुलझा है

प्रश्न: आचार्य जी, जैसे कि किसी ने मुझसे पहली बार झूठ बोला, और जब मैं उसे धमकाता हूँ, जो मुझे उस समय अच्छा लगता है, वो अगर मैं उसको दस दिन बाद बोलूँगा, तो मुझे वो चीज़ नहीं मिलेगी। मैं छटपटा लिया, तब जाकर मैंने उसे बताया, तो फिर वो दस दिन मुझे व्यर्थ प्रतीत होते हैं कि काश मैंने पहले ही क्यों नहीं कह दिया, पहली बार में ही! और वो कहने के बाद, अंदर जो शान्ति आती है कि मैंने जो कहना था कह दिया!

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org