मन गलत दिशा को क्यों जाता है?
मन गलत दिशा में नहीं भाग रहा। मन ठीक वहीं को जा रहा है जहाँ जाने की तुमने उसे शिक्षा दे रखी है। जब तुम मन को लगातार यही शिक्षा देते हो कि अय्याशी ही सुख है। तो मन अय्याशी की तरफ भागे तो इसमें ताज्जुब क्या है? फिर क्यों परेशान होते हो कि मन उधर को ही भाग रहा है? तुम उसे दिन-रात शिक्षा वही देते हो। तुम सड़क पर निकलते हो, तुम देखते हो किसी नेता का काफिला चला जा रहा है, वहाँ साथ में हथियारबंद लोग है, तुम कहते हो कि यही जीवन का परम उत्कर्ष है। ये मिल जाए तो इससे ऊँचा कुछ नहीं हो सकता। अब अगर तुम किताब पढ़ रहे हो और उसी तरह का दृश्य आने लग जाए रेडियो में, टी.वी. में या सामने अखबार में दिख जाए या इंटरनेट में दिखने लगे और तुम्हारा मन उधर को ही भागे, तो अब उसमें क्या आश्चर्य है?
जबसे पैदा हुए तुम्हें कहा गया कि पैसा बड़ी बात है। अब पैसे से जितनी सुख सुविधाएं आ सकती है, जितना वैभव और ऐश्वर्य आ सकता है, वो बड़ी बात है। तुम यहाँ बैठे हो और तुम्हारा मन बार-बार ये करे कि शॉपिंग मॉल में चला जाऊँ, तो इसमें क्या ताज्जुब है? क्योंकि पैसा तो तुम्हें वहीं पर बिखरा दिख रहा है और पैसे से जो कुछ हो सकता है, वो भी दिख रहा है। तो अब हॉस्टल में बैठने का मन कहाँ करेगा। मन कहेगा कि चलो उधर ज़रा घूम कर आते हैं। खूब रोशनी है, चिकना फर्श है, सुन्दर चेहरे हैं। ये सब शिक्षा तुमने ही दी है अपने-आपको।
तो जो लोग चाहते हैं कि मन उनके साथ रहे, उन्हें मन की पूरी शिक्षा ही बदलनी पड़ेगी। मन के ये जो गहरे संस्कार हैं, इनको बदलना पड़ेगा। तुमने झूठी बातों को अपने मन में महत्व दे रखा है। और जब तक मन में उन्हीं को…