मन को स्थिर कैसे करें?

अगर शरीर के किसी हिस्से में दर्द हो तो उसका अनुभव ज़्यादा होता है बाकी हिस्सों के मुकाबले। जो बुरा लगता है, वो चेतना पर अपना एहसास अंकित कराता है। तुम चावल खा रहे हो, अचानक कंकड़ आ गया, खट से उठ कर बैठते हो न? चेतना पर जैसे किसी ने प्रहार किया हो।

जो बुरा लगता है उसका ही एहसास ज़्यादा होता है। तो जो तुम्हें बुरा लगता है, उसका तो तुम्हें पता होगा न? जो कुछ अस्थिर करता होगा तुम्हें, वही तुम्हें भलीभांति पता होगा। ये बहाना कोई नहीं बना सकता कि मैं अस्थिर क्यों हूँ? तुम खूब जानते हो कि कौन से तत्व हैं, कौन सा माहौल, कौन सी घटनाएं हैं, कौन से व्यक्ति, क्या विचार जो तुमको अस्थिर कर जाते हैं।

जब तुम अस्थिर होते हो, और बुरा लगता है तो उसी क्षण चेतना पर दाग लग जाता है। जैसे शरीर पर दाग लग गया हो। तो तुम जानते हो कि क्या अस्थिर करता है तुम्हें। तो उसको क्यों इजाज़त देते हो खुद को अस्थिर करने की? वो इतना बड़ा है कि आकर तुमको पकड़ लेता है और तुमको अस्थिर कर देता है? या तुम्हारा कोई लालच है जो तुम्हें बार-बार तुम्हें उसके पास ले जाता है?

तुम खुद अस्थिर होने को लालायित हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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