मन को मुक्ति की ओर कैसे बढ़ाएँ?

शुरुआत दुःख से होती है।

तुम पूछ रहे हो, “कैसे मन को संसार से मोड़कर मुक्ति की ओर लगाया जाए? और फिर कैसे उसकी दिशा को मुक्ति की ओर ही रखा जाए?” दोनों ही बातें जो तुमने पूछी हैं, उनमें दुःख का बड़ा महत्त्व है।

शरीर का संसार से लिप्त रहना, संसार की ही ओर भागते रहना, संसार से ही पहचान बनाए रखना, ये तो तय है; ये पूर्वनियोजित है। बच्चा पैदा होता है, उसे क्या पता मुक्ति इत्यादि। पर उस पालना

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org