मन को बदलने दो, बाहरी माहौल खुद ही बदल जाएगा
प्रश्न : आचार्य जी, मेरे डर मेरे माहौल को बदलने नहीं दे रहे हैं? इसमें मैं क्या करूँ?
आचार्य प्रशांत : ऐसा ही है लेकिन ये भी तय है कि अगर भीतर का माहौल बदलता है तो आदमी खुद ही बाहर का माहौल बदल देता है। आदमी खुद ही ऐसे चुनाव करता है जो बाहर का माहौल बदल देंगे। तो आप जब आंतरिक रूप से बदलने लग जाते हो तो ज़ाहिर सी बात है आप बाहर भी बदलाव लाने के लिए तैयार हो जाते हो, उत्सुक हो जाते हो।
श्रोता : जी, आचार्य जी।
आचार्य जी :- बाहर कैसा बदलाव ला पाते हो वो इस पर निर्भर करेगा कि अंदर से कितने बदले हो। जिस मंज़िल पर बैठे हो वो निर्धारित करेगा कि तुम्हारे आस-पास कौन से लोग बैठे हैं, बाहर का माहौल कैसा है। अगर पहली मंज़िल पर बैठे हो तो क्या माहौल रहेगा? अगर तुमने चुन लिया कि पहली ही मंज़िल पर बैठना है तो वहाँ जानते ही हो क्या माहौल रहेगा और अगर तुम्हीं ने चुन लिया कि दूसरी मंज़िल पर बैठना है तो ये भी जानते हो कि वहाँ क्या माहौल रहेगा। पर ये माहौल बदले इसके लिए ये आवश्यक है कि तुम्हारे भीतर जो बैठा है जो चुनाव करता है, जिस केंद्र से सारे निर्णय लिया जा रहा है वो केंद्र बदले। अगर वो केंद्र बदल गया तो बाहर का माहौल तो बदलना ही है, पक्का है। उसकी तो तुम चिंता ही मत करो, वो तुम अपने आप निर्णय ले लोगे।
तुम पाओगे की अब तुम बेबस हो तुम्हें निर्णय लेना ही पड़ेगा। अभी तुम्हें निर्णय लेने में ना, ये जो दुविधा आ रही है, अभी जो तुम फँसे हुये से लग रहे हो वो सिर्फ इसलिए है क्योंकि अभी तुम स्वयं ही किसी केंद्र पर ठीक-ठीक…