मन को अशांत करने वाले कामों से कैसे बचें?
दो चीज़ें एक साथ चाहिएं: विवेक और वैराग्य।
विवेक का अर्थ होता है भेद कर पाना, अंतर कर पाना, हर वो काम जो हम कर रहे हैं वो ज़रूरी नहीं है।
विवेक का काम होता है देखना कि कौन-सा काम वाकई ज़रूरी है।
देखो, ऐसा नहीं होगा कि तुम्हारी ज़िन्दगी में बीस काम ऐसे हों जो तुम्हारा चैन ख़राब करते हों और वो बीसों बहुत आवश्यक हों, ऐसा नहीं होगा, तो विवेक का इस्तेमाल करो, वो ताकत हम सब के पास होती है।
देखो, कि कौन से काम ऐसे हैं जिनको छोड़ा जा ही सकता है, और क्या बीस-के-बीस काम ढ़ोना ज़रूरी हैं? क्या उनमें से कुछ ऐसा नहीं जिसको कम कर दो, या बाहर कर दो या न्यून ही कर दो?
फिर चाहिए वैराग्य,
वैराग्य का अर्थ है जो छोड़ा, सो छोड़ा।
वैराग्य का अर्थ है कि जो छोड़ने लायक है उससे आसक्ति नहीं रखेंगे।
जितना तुम अधिक-से-अधिक छोड़ सकते हो उसको छोड़ो और फिर जो छोड़ो उसकी ओर मुड़कर मत देखो।
सही राह चलते रहे तो जीवन में जितना कुछ अनावश्यक है वो शनैः-शनैः हटता ही जाएगा।
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