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मन को अखाड़ा न बनने दें!

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मन को अखाड़ा न बनने दें!

प्रश्न: क्या ध्यान का मतलब है सब कुछ होगा बाहर, लेकिन आपके मन पर उसका असर नहीं होगा?

आचार्य प्रशांत: बढ़िया, सब चलेगा।

तुम्हारे ध्यान में आने से दुनिया का काम-धाम नहीं रुक जाएगा। तुम्हारा अपना काम-धाम भी रुक नहीं जाएगा। तुम खेल रहे हो तो खेलोगे, तुम दौड़ रहे हो तो दौड़ोगे, तुम पढ़ रहे हो तो पढ़ोगे। पर तुम जो भी कुछ कर रहे होगे उसमें पूरी तरह से मौजूद रहोगे, सोए-सोए से नहीं रहोगे, खोए नहीं रहोगे, और कुछ ऐसा होगा जो, जो भी कुछ चल रहा होगा उसमें हिस्सा नहीं ले रहा होगा। उससे थोड़ा-सा अलग होकर देख रहा होगा।

तुमने कभी किसी आदमी को देखा है जो बहुत गुस्से में हो? वो कहता है, “मेरे बावजूद मुझे गुस्सा आ गया। मैं चाहता नहीं था लेकिन गुस्सा कर गया।”

क्यों?

क्योंकि वो पूरा ही गुस्सा हो चुका होता है। उसके भीतर कुछ भी ऐसा नहीं बच गया जो बस साक्षी-भाव बनकर देख सके, जो द्रष्टा रह गया हो उस गुस्से का। उसका मन जो है, वो पूरी तरह से क्रोध में चला गया है।

‘ध्यान’ का अर्थ है — जो चल रहा है उसे चलने देना है, उसमें हस्तक्षेप नहीं करना है, लेकिन कोई ऐसा है जो उस चलते हुए को देख रहा है।

उसी को ‘ध्यान’ कहते हैं।

ध्यान का अर्थ यह नहीं है कि साधु-संत बन गए, और ध्यान की मुद्रा में बैठ गए; बल्कि ध्यान में व्यक्ति ज़्यादा क्रियाशील होता है। असल में वही दुनिया को जीतने वाला होता है। वो अगर इंजीनियर है तो बेहतर इंजीनियर होगा, वो अगर खिलाड़ी है तो बेहतर खिलाड़ी होगा

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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