मन के मोटापे से बचो

कॉलेज, घर, दोस्त, माता-पिता, शिक्षक, शॉपिंग मॉल; तुम्हारा संसार यही है, इतना ही है।

कोई और होगा जिससे मैं पूछूँ, “संसार माने क्या?,” वो शायद बोलेगा, ‘लेबोरेटरी’ (प्रयोगशाला)। यह उसका संसार है। अगर कोई प्रेम में है और मैं उससे पूछूँ, “संसार क्या है?,” वो कहेगा, “मेरी प्रेमिका।” क्या कोई एक संसार है तुम्हारा?

मन ही संसार है।

जैसा तुम्हारा मन, वैसा संसार।

अगर तुम वाकई में शांत हो, तुम ऐसी जगहों पर जाओगे ही क्यों जो अशांत हैं? एक आदमी है जो शांति को जान गया है, अब वो अपने आसपास कैसा माहौल निर्मित करेगा? शांति का या अशांति का?

जो अशांत आदमी है, जो हिंसक आदमी है, जिसका मन ऐसा है, वो कैसे परिवेश में पाया जाएगा? अशांत। बल्कि उसको तुम शांति के माहौल में डालोगे तो छटपटा जाएगा।

तुमने कभी नशाखोरों को देखा है? यदि वो खुद को अपनी खुराक न दें दो दिनों के लिए, तो वो काँपने लगते हैं। अब उसका संसार क्या है? उसका संसार वही है, ‘खुराक’!

संसार की चिंता मत करो।

संसार अपना ध्यान खुद रख लेगा, क्योंकि संसार तुम्हारे मन से कुछ अलग नहीं है।

तुम्हारा जैसा मन होगा, तुम वैसा ही संसार निर्मित कर लोगे।

तुम पाओगे संसार बिल्कुल वैसा ही हो गया है, कोई अंतर नहीं है। एक ही घटना घट रही होगी, उसको ही तुम अलग तरीके से देखना शुरू कर दोगे, क्योंकि तुम्हारा मन बदल गया है। घटना वही घट रही है, मन बदल गया है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org