Sitemap

Member-only story

मन के मते न चालिए

आचार्य प्रशांत: दो तरीके की गुलामी होती है —

एक तरीके की गुलामी होती है, ‘बड़ी सीधी’। वो ये होती है कि कोई तुमसे कहे कि, “चलो ऐसा करो”, ये गुलामी साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है कि मुझे कहा गया तो मैंने करा। पर ये गुलामी बहुत दिन तक चलेगी नहीं, क्यों? क्योंकि दिख रहा है साफ़-साफ़ कि कोई मुझपर हावी हो रहा है। तो तुम्हें बुरा लगेगा। तुम बचकर निकल जाओगे।

एक दूसरे तरीके की गुलामी होती है, ऐसे समझ लो कि एक गुलामी ये है कि मैं शीतल पेय बनाता हूँ। मैं एक शीतल पेय का उत्पादक हूँ। मुझे अपना शीतल पेय का उपभोग कराना हैं, तो मैं एक तरीका यह इस्तेमाल कर सकता हूँ कि मैं तुम्हें आदेश दूँ कि, “चलो पियो!”। पर यह तरीका बहुत मेरे लिए उपयोगी सिद्ध नहीं होगा। क्यों? क्योंकि कोई भी चाहता नहीं है गुलाम होना। और ख़बर फ़ैलेगी, लोग बचने लगेंगे, भागेंगे, मेरे सामने नहीं आएँगे, या कह लेंगे कि हम पी लेंगे, पर पीयेंगे नहीं। यही सब होगा। अगर मैं ज़रा-सा चालाक हूँ, तो मैं एक दूसरी विधि अपनाऊंगा। मैं ये बोलूँगा ही नहीं तुमसे कि चलो शीतल पेय पियो, मैं तुम्हारे मन में एक चिप लगा दूंगा, और उसमें लिखा होगा, “शीतल पेय पियो”। और फ़िर तुम ख़ुद बोलोगे, “मेरा मन है शीतल पेय पीने का। मैं पी रहा हूँ।”, और अब अगर कोई तुमसे आकर कहेगा भी कि ये गुलामी है, तो तुम कहोगे कि “ये गुलामी नहीं है, ‘मेरा’ मन कर रहा है। और तुम मेरे दुश्मन हो, अगर मुझे रोक रहे हो मेरे मन की बात करने से।” बात समझ रहे हो?

ये जो पूरा तर्क होता है न कि मुझे अपनी मर्ज़ी पर चलना है, अपने मन पर चलना है, उनसे पूछो कि तुम्हारा मन ‘तुम्हारा’ है क्या? तुम्हारा मन…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

No responses yet