मन की आवाज़, या आत्मा की?

कुछ सूत्र होते हैं जिनका इस्तेमाल करके पकड़ा जा सकता है कि जो आवाज़ तुम सुन रहे हो वो मन की है या आत्मा की है।

पूछो कि जो तुम करने जा रहे हो उसमें तुम्हारा व्यक्तिगत लाभ कितना है? पूछ लो कि अगर जो करने जा रहे हो वो नहीं करोगे तो क्या हो जाएगा?

मन कारणों पर चलता है। मन हानि-लाभ पर चलता है। आत्मा की प्रेरणा अकारण होती है। वहाँ तुम्हें कोई स्पष्ट या विशेष फ़ायदा दिखाई नहीं देगा। बस ये अहसास रहेगा कि ये करना अनिवार्य है। अभ्यास करते-करते ये फिर आसानी से स्पष्ट होने लगता है कि अभी भीतर से जो प्रेरणा या आवेग उठ रहा है वो मानसिक है या आत्मिक? हजारों, लाखों लोग अगर किसी एक साझी दिशा जा रहे हों तो सम्भावना ज़्यादा इसी बात की है कि वो दिशा वृत्ति की है, आत्मा की नहीं है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org