मन का कारागार

प्रश्नकर्ता: सर, अगर रिश्ते भी छोड़ दिए, कर्तव्य भी छोड़ दिया, ज़िम्मेदारी भी छोड़ दी, सब छोड़ दिया, फिर क्या बचेगा?

आचार्य प्रशांत: बहुत अच्छा सवाल है। बिल्कुल ऐसा ही सवाल है कि जैसे कुँए का मेंढ़क पूछे कि कुआँ छोड़ दिया तो सृष्टि ही ख़त्म। क्योंकि उसके लिए कुँए के अतिरिक्त सृष्टि कुछ और है ही नहीं। कुँए के मेंढक को बड़ा डर लगेगा अगर उससे ये बात बोली जाए कि कुँए से बाहर आया जा सकता है। कुआँ सिर्फ तेरा बन्धन है। पर उसकी बात हमें समझनी पड़ेगी। सहानुभूतिपूर्वक समझनी पड़ेगी कुँए के मेंढक की बात। क्या कुँए के मेंढक ने कुँए से बाहर की दुनिया जानी है? कुँए के मेंढक से पूछो तो कहेगा कि सम्पूर्ण सृष्टि यही है। वो कहेगा सब कुछ इसी में है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड यहीं है। उसको अगर तुम ये बोलो कि एक लहलहाता समुद्र हैं, तो कहेगा, ‘क्या! शक्ल से मेंढक नहीं गधा लगता हूँ? कह रहा है कि जो कुछ है ये कुआँ है। दिखाओ इस कुँए में कहाँ है समुद्र?’ तो कुँए के मेंढक से तुम कहोगे कि बाहर निकल तो बिल्कुल यही सवाल पूछेगा, ‘बाहर निकलूँगा तो जाऊँगा कहाँ? क्योंकि सब कुछ तो यही है!’ और एक दूसरा मेंढक होगा तो कहेगा, ‘सन्यास!’, जैसा अभी इधर से आवाज़ आयी थी।

( सभी श्रोता हँसते हैं )

प्र१: सर, ये तो मेंढक वाली बात हुई। हम तो मनुष्य हैं, अब हम कहाँ जाएँगे?

आचार्य: तुम सिर्फ उतना ही सोच पा रहे हो जितना तुम्हारा संस्कारित अनुभव है। अगर तुम ये जानोगे कि तुम बन्धन में हो तो इसी जानने के साथ ये भी समझोगे कि बन्धन का अर्थ होता है कि जो विशाल है, वृहद् है, जो सम्भव है, वो तुमने कभी जाना ही नहीं। तुमने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org