मन का कारागार

प्रश्नकर्ता: सर, अगर रिश्ते भी छोड़ दिए, कर्तव्य भी छोड़ दिया, ज़िम्मेदारी भी छोड़ दी, सब छोड़ दिया, फिर क्या बचेगा?

आचार्य प्रशांत: बहुत अच्छा सवाल है। बिल्कुल ऐसा ही सवाल है कि जैसे कुँए का मेंढ़क पूछे कि कुआँ छोड़ दिया तो सृष्टि ही ख़त्म। क्योंकि उसके लिए कुँए के अतिरिक्त सृष्टि कुछ और है ही नहीं। कुँए के मेंढक को बड़ा डर लगेगा अगर उससे ये बात बोली जाए कि कुँए से बाहर आया जा सकता है। कुआँ सिर्फ तेरा बन्धन है। पर उसकी बात हमें समझनी पड़ेगी।…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org