मन और अहम क्या? वृत्ति और मुक्ति क्या?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मन के बारे में बहुत बोला जाता है कि मन चंचल है, ये है, वो है, लेकिन अगर हम मूल की बात करें तो मन क्या है, बुद्धि है या अहंकार? जब हम पैदा हुए, तब से लेकर अब तक की जो याददाश्त है, वो मन है या कुछ और?

आचार्य प्रशांत: मन पैदा होने से पहले का ही है। पैदा होने के बाद तुम्हारी मेमोरी (स्मृति) शुरु होती है न? पैदा होने के बहुत-बहुत बाद, दो साल बाद, ढाई साल बाद।

प्र१: ये मन यदि पहले से ही है, तो फिर इसको जानना असंभव होगा क्या?

आचार्य: क्यों? पहले का होगा, कभी का होगा। (तकिया दिखाते हुए) ये बहुत पहले का है, मुझे क्या पता कब का है, लेकिन मैं इसको जान नहीं सकता क्या? है तो मेरे सामने। ताजमहल को तुम नहीं जान सकते? या ये कहोगे कि इतना पहले का मैं कैसे जान सकता हूँ?

प्र१: आप टेंजिबल (ठोस, स्पर्शनीय) चीज़ों की बात कर रहें हैं।

आचार्य: मन टेंजिबल नहीं है क्या? ऑनली इनटेंजिबल इज़ ट्रुथ (एकमात्र सत्य ही अमूर्त है), बाकी सब टेंजिबल है।

भावनाएँ टेंजिबल (ठोस, स्पर्शनीय) नहीं होतीं?

प्र२: यदि इस शरीर के आने से पहले भी मन था, तो शरीर के जाने के बाद भी मन रहेगा क्या?

आचार्य: शरीर के आने के पहले नहीं, प्रश्नकर्ता ने कहा, “जन्म के पहले।” मैंने कहा, “तुम्हारे जन्म के बाद जो होता है वही मन नहीं है, मन तो तुम्हारे जन्म से भी पहले का है।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org