मनोरोगों का आखिरी इलाज

देखो मन की और मस्तिष्क की बीमारियाँ अलग-अलग होती हैं। अगर मस्तिष्क के तल पर, माने भौतिक शरीर के तल पर, कोई समस्या निकली है तो उसका इलाज तो भौतिक ही होगा। पर आम तौर पे जो मनोरोग होते हैं उनमें 90–95 फीसदी जो समस्या होती है वो मस्तिष्क के तल पर नहीं होती है, वो मन के तल पर होती है।

मन है, मन का प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। रोग मानसिक है तो वो जो मानसिक रोग है उसका प्रभाव मस्तिष्क पर दिखाई देता है। अब आप मस्तिष्क को देख रहे हो और मस्तिष्क पर कुछ दवाओं का प्रयोग कर रहे हो, ये अब काम क्या करेंगे? ये ऐसा करेंगे कि मस्तिष्क पर जो प्रभाव हो रहे हैं मानसिक रोग के, ये उन प्रभावों को, उन लक्षणों को दमित कर देंगे। इससे आपका इलाज नहीं हो रहा।

शरीर में जो कुछ हुआ हो उसके लिए शारीरिक दवाई खा लो लेकिन मन में जो कुछ हुआ हो उसका तो जो इलाज है, वो अध्यात्म ही है।

अध्यात्म में गहरे-गहरे और गहरे प्रवेश करिए। मन की एक ही बीमारी है, आत्मा से दूरी, शांति से दूरी, सच्चाई से दूरी। ये बात मैं उन सब लोगों से बोलना चाहूँगा जो तमाम इस तरह के रोगों से ग्रसित है। चाहे वो डिप्रेशन हो, एंग्जायटी हो, इन सब के कारण मूलतः आध्यात्मिक है। गोलियाँ ले-लेकर के आप इन रोगों के लक्षणों का बस दमन कर देते हैं, रोग कही नहीं जाने वाला। रोग का संबंध आपकी हस्ती से है। उस हस्ती के केंद्र को जब तक आप एक सही जगह नहीं देंगे, तब तक आपकी हस्ती रुगन ही रहेगी।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org