फ़िल्में: मनोरंजन या मनोविकार?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी एक तरफ तो फ़िल्में हमें मनोरंजन देती हैं, हँसाती हैं, रुलाती हैं और दूसरी ओर उसी इंडस्ट्री से दुःखद और चौका देने वाली खबरें भी आती रहती हैं। कुछ कहिए!

आचार्य प्रशांत: सबसे पहले तो हमें इस धारणा से बाहर आना होगा की फ़िल्में मात्र हमें मनोरंजन देती हैं। इस धारणा के पीछे हमारा अज्ञान है मन के प्रति और मनोरंजन के प्रति। हम चूंकि समझते नहीं कि मन क्या है और उसको क्यों उत्तेजना की या मनोरंजन की बार-बार ज़रूरत पड़ती रहती है। इसीलिए हम मनोरंजन की तरफ दौड़ते भी रहते हैं और मनोरंजन को साधारण या हानिरहित या कोई अगंभीर, सस्ता मसला समझ कर छोड़ देते हैं। मनोरंजन उतनी छोटी चीज़ नहीं है। रंजन का अर्थ समझते हो। रंजन का मतलब होता है दाग लगना। कई अर्थ है रंजन के जिसमें से एक अर्थ में दाग लगना। मनोरंजन एक तरीके से मन को दागदार करने का काम है। ख़ास तौर पर अगर मनोरंजन की गुणवत्ता पर ध्यान न दिया जाए तो।

हम क्या सोच रहे हैं कि मनोरंजन बस आता है, हमारा मन बदल करके, हमारा मूड ठीक करके जैसा तुमने लिखा है कि हमें हँसाती हैं, रुलाती हैं फ़िल्में, बस इतना ही काम है उसका? तुम्हारा मन बहला देना और तुम्हारा मूड ठीक करके चले जाना? नहीं इतना ही नहीं है! हम जिस चीज़ का प्रयोग कर रहे हैं मनोरंजन के लिए, वह चीज़ आ करके हमें उत्तेजना या बहलाव देकर चली नहीं जा रही है। वह हमारे मन में बस जा रही है। रंजन माने क्या? दाग लगना, जैसे कोई बाहरी चीज़ आई हो उसने तुम्हें स्पर्श किया हो और स्पर्श के बाद उस चीज़ का निशान तुम्हारे ऊपर छूट गया हो। वैसे ही मनोरंजन है कोई बाहरी चीज़ आती है उसकी कहानी, उसके…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org