मनुष्य वही जो मनुष्यता की सीमाओं के पार जाए
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आप गौर करिएगा, आपके ध्यान के गहरे क्षण में आपको यह बिल्कुल याद नहीं रहेगा कि आपका रूप, रंग, आकार क्या है? आपकी पहचान क्या है? आप हो कौन? ह्यूमन बीइंग का अर्थ बिल्कुल भी वो नहीं है जो आँखों के सामने चित्र उभरता है, कि एक मनुष्य शरीर खड़ा हुआ है, और उसका प्रमाण एक ही है - प्रमाण है ध्यान। प्रमाण यही है कि आप अपने आप से पूछें कि “जब वास्तव में गहरे उतरा होता हूँ, तब यह सब याद रहता है कि ‘कौन हूँ’? ‘कहाँ से आया हूँ’? भूल जाते हैं।
और मैंने कहा कि आत्म चेतना और सांसारिक चेतना एक साथ ही चलती हैं। कोई आपके सामने भी खड़ा है और उससे आपका सम्बन्ध वाकई आत्मिक है, वाकई; छिलके-छिलके भर नहीं है, सतह-सतह पर नहीं है। तो आप पाएँगे कि आपके लिए महत्वहीन होने लगेगा कि वो कौन है, बिल्कुल महत्वहीन होने लगेगा। क्योंकि ‘कौन’ से तो हमारा अर्थ ही होता है दुनिया भर के नाम, लेबल, रिश्ते, पहचानें; यह महत्वहीन होना शुरू हो जाएगा। ध्यान वाकई गहरा है तो आपके लिए यह भी महत्वहीन हो जाएगा कि सामने वाला ह्यूमन बीइंग है या नहीं है और तब आप वास्तव में ह्यूमन हैं।
जब मनुष्य होने के भाव से छुटकारा मिल जाए, तब समझिए कि मनुष्य हुए।
मनुष्य वास्तव में वही; मनुष्य जन्म की सार्थकता वास्तव में उसको ही, जिसने मनुष्य होने के भाव से ही छुटकारा पा लिया।
और यह छुटकारा कुछ कर-कर के नहीं पाया जाता। आप बैठ कर साधना करते रहें तो उससे छुटकारा नहीं पाएँगे, यह तो सहज ध्यान का फल होता है। प्रेम की, एक होने की गहरी अनुभूति आप में चाहे किसी पदार्थ के लिए उठे, चाहे एक बिल्ली के बच्चे के लिए और चाहे किसी इन्सान के लिए, प्रेम जैसे-जैसे गहराता जाएगा वैसे-वैसे यह बात गौड़ होती जाएगी कि प्रेम का विषय क्या है?
अब प्रेम का विषय महत्वपूर्ण नहीं रह जाएगा, मन महत्वपूर्ण रह जाएगा, प्रेम आपके मन का माहौल बनता जाएगा, प्रेम मनोस्थिति है। जो सतही प्रेम होता है वो अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग होता है, विषय अभी महत्वपूर्ण है।
जो गहरा प्रेम होता है वो एक होता है, विषय कोई भी हो।
फर्क नहीं पड़ता किसके प्रति है, एक है। रूप, रंग, आकार जब कीमती न लगें, जब उनकी ओर इतना भी ध्यान न जाए कि आप कहें कि ‘’कीमती नहीं हैं”, क्योंकि यह कहना कि “कुछ कीमती नहीं है” कम से कम उस वस्तु के होने का एहसास तो कराता है; चाहें आप कहें “कीमती है” चाहें आप कहें “कीमती नहीं है।”
जब यह विचार ही आना बंद हो जाए कि कीमती है कि नहीं है, बस आपकी मौजूदगी है, आपका होना है, आपकी सत्ता का सहज प्रस्फुटन है, सहज सम्बन्ध है उस समय कौन मैं और कौन तू? याद किसको है? दूसरे शब्दों में ऐसे भी कह लीजिए…