मध्यम मार्ग सच और झूठ को आधा-आधा अपनाने का नाम नहीं

महात्मा बुद्ध करुणा से बहुत भरे हुए थे इसलिए बहुत व्यावहारिक थे। उन्हें ऊँचे आदर्शों या सिद्धांतों में नहीं खेलना था, उन्हें वास्तव में सामने जो जनमानस था उनकी मदत करनी थी।इसीलिए उन्होंने अपनी पूरी प्रकिया, अपनी पूरी देशना और अपनी पूरी भाषा ऐसी रखी, जो आम आदमी कि समझ में आ सके और व्यवहार में उपयुक्त हो सके।

बुद्ध नकार के वैज्ञानिक है, बुद्ध की सारी भाषा ‘न’ की भाषा है। बुद्ध का काम है हटाना, साफ़ करना।

सामंजस्य करके चलने का नाम मध्यम मार्ग नहीं है, बढ़िया समायोजित होने का नाम मध्यम मार्ग नहीं है। जहाँ पर दिखाई दे की सच्चाई है, वहाँ निष्ठा शत प्रतिशत हो, वहाँ मत कह दीजियेगा की मध्यम मार्गी हूँ तो 50–50।

मध्यम मार्गी होने का मतलब ये नहीं है की इधर सच है और इधर झूठ है और मैं दोनों का बराबर का समर्थन करता हूँ। नहीं, ये नहीं करना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org