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मंदिर- जहाँ का शब्द मौन में ले जाये
प्रश्न: ‘अनहता सबद बाजंत भेरी’, कृपया इसका अर्थ बताएँ?
वक्ता: मंदिर से जो घंटे, घड़ियाल, ढोल, नगाड़े की आवाज़ आ रही है; वो ‘अनहद’ शब्द है | घंटा जैसे बजता है, अच्छा है | शब्द वही अच्छा जो जब बजा तो ऐसे बजा जैसे चोट करी हो, और फिर क्योंकि चोट करी, इसीलिए तुम्हारा मन उसी के साथ जाकर अटक गया | मन तो स्थूल होता है | जो बातें बड़ी, आकर्षक, डरावनी या लुभावनी हों, मन उन्हीं के साथ जाकर अटकता है | तुम बैठे हो और अचानक घंटा बज जाए, मन जाकर उस पर अटक जाएगा | ज़ोर की चोट होती है |
मन उस पर अटका। वो जो झंकार थी, उस पर अटका और फिर वो झंकार स्थूल से सूक्ष्म होती गयी | और जैसे-जैसे आवाज़ सूक्ष्म होती गयी, वैसे-वैसे उसके साथ मन भी सूक्ष्म होता गया, शांत होता गया |
श्रोता १: क्या यह द्वैत है? एक तरफ शोर और दूसरी तरफ शान्ति |
वक्ता: नहीं | शान्ति, शोर का द्वैत विपरीत नहीं होती है | यह द्वैत नहीं है | ये सब बातें अद्वैत की हैं | शान्ति! मौन! मौन का अर्थ शोर का विपरीत नहीं है |
श्रोता १: अभाव |
वक्ता: अभाव भी नहीं है | बात दूसरी है | शब्दहीनता और मौन में बहुत अंतर है | अभाव, शब्दहीनता है | तो शोर है, और शब्दहीनता है, इन दोनों में से मौन कुछ नहीं है | यद्यपि मौन दोनों में मौजूद है|
श्रोता १: जैसे हम रोशनी और अँधेरा बोलते हैं, तो अँधेरा कुछ अलग नहीं है | यह सिर्फ प्रकाश का अभाव नहीं है?
वक्ता: नहीं | रोशनी और अँधेरा वो नहीं हैं, हम जिस प्रकाश की बात करते हैं | हम जिस प्रकाश की बात करते हैं उसका कोई विपरीत नहीं होता क्योंकि उसका अभाव कभी होता ही नहीं है | तो रोशनी और अँधेरा इस सामान्य रोशनी के लिए ठीक हैं, कि बत्ती जलाई तो रोशनी है और बत्ती नहीं जलाई तो अँधेरा | जब बाइबिल कहती है, “लेट देअर बी लाइट”, तो उस प्रकाश का कोई विपरीत नहीं है, कि रोशनी और अँधेरा | उसका कोई विपरीत नहीं है |
जब हम कहते हैं सत्य प्रकाश है, तो उस प्रकाश का कोई विपरीत नहीं है, कोई अन्धकार नहीं है | उसमें फँस मत जाइएगा |
श्रोता २: प्रकट होना कह सकते हैं?
वक्ता: किसका क्या प्रकट हो रहा है? प्रकट होना भी नहीं है | उसकी लगातार मौजूदगी है, बाकि सब प्रतीत होता है | मौन लगातार है | मैं जो कुछ कह रहा हूँ आपसे, क्या आप सुन पाएँगे अगर मौन न हो?
मौन वो है जो लगातार है, जिसका होना कभी कम या ज्यादा नहीं होता | शब्द आते-जाते रहते हैं | शब्द कभी हैं, कभी नहीं हैं | वहां पर द्वैत है, शब्दों का होना या शब्दों का न होना | वो चलता रहता है | कभी शब्द हैं, कभी शब्द नहीं हैं | मौन वो है जो लगातार है | जो शब्दों के होते हुए भी है, जो शब्दों के न होते हुए भी है | ठीक वैसे ही जैसे मन में भविष्य के, अतीत के विचार आते-जाते रहते हैं…