भौतिक वस्तुओं की क्या महत्ता है?

पदार्थ में, चीज़ों में, वस्तुओं में, बुराई क्या हो गई? पर समझ लेना कि उसमें अच्छाई भी कब है? उसमें अच्छाई भी तब है, जब वो तुम्हारे काम आए।

एक सज्जन को देखा मैंने, वो अपनी एक बहुत बड़ी गाड़ी, जो उन्होंने नई-नई ही खरीदी थी, महंगी गाड़ी, एक-तिहाई दाम में बेच रहे थे। तो किसी ने बताया कि इस नई गाड़ी में इनके जवान बेटे की मौत हो गई थी। तो इस गाड़ी को वो किसी भी तरीक़े से अपनी नज़रों से हटाना चाहते हैं।

गाड़ी, शानदार। चालीस-पचास लाख की गाड़ी। मस्त गाड़ी, वो भी नई। और वो उसको देखना भी नहीं चाहते थे। कह रहे थे, “हटाओ सामने से, आग लगा दो। कोई नहीं खरीदता हो तो, कबाड़ में दे दो।” घर में भी नहीं रखते थे। किसी और को दे रखी थी — “अपने पास रखो, बिकती हो तो बेचो, नहीं तो इसको काटने भेज दो।”

क्यों? पदार्थ ही तो था। कितना शानदार पदार्थ था। इतना शानदार पदार्थ था, इतना महँगा पदार्थ था। पदार्थ ही तो है न? गाड़ी क्या है? पदार्थ है न गाड़ी। वो उसको क्यों देखना भी नहीं चाहते थे? क्योंकि काम नहीं आई। बल्कि काम बिगाड़ गई।

पदार्थ प्यारा तब है, जब काम आ जाए।

पदार्थ बहुत प्यारी चीज़ है, अगर काम आ जाए। या तो देख लो कि तुम्हारा पदार्थ तुम्हारे काम आ रहा है, या नहीं आ रहा है। होगा बहुत महँगा, संसार उसकी बहुत कीमत लगाता होगा, तुम्हारे काम आ रहा है?

और ‘काम आने’ की परिभाषा क्या होती है? अंततः तुम्हें चाहिए तो चैन और शांति ही न? सबसे यही चाहिए। घर से भी यही चाहिए, कोठी से भी यही चाहिए, व्यापार-कारोबार, धंधे से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org