भोगवृत्ति और अध्यात्म

आज अगर कहीं पर भी भुखमरी है तो वो इसलिए नहीं है कि बहुत कम उत्पादन हो रहा है, वो इसलिए है क्योंकि आदमी लालची है भोग का। वो एक तरफ तो भोगता है उन सब चीज़ों के माध्यम से जो उत्पादित हो रही हैं और दूसरी तरफ वो भोग-भोगकर के संतानें उत्पन्न करता है। नतीजा — हम एक ऐसी दुनिया चाहते हैं जहाँ बहुत सारे लोग हों क्योंकि भोगने में संतानोत्पत्ति निश्चित रूप से शामिल है। आपको आपके बढ़े-बूढ़े आशीर्वाद भी देते हैं तो दो बातें अक्सर कहते हैं — “दूधो नहाओ, और पूतो फलो”, और दोनों बातें भोग से संबंधित हैं, गौर से समझना। पहली बात कहती है कि तुम्हारे पास खाने-पीने को बहुत सारा हो और दूसरी बात कहती है कि तुम बहुत सारे बच्चे पैदा करो। तो तुम ले देकर के ये आशीर्वाद पा रहे हो कि तुम अपनी तादाद भी बढ़ाते जाओ और जिनकी तादाद बढ़ रही है, वो सब और, और, और, और भोगते भी जाएँ। इस पृथ्वी के पास इतना है कहाँ?

हमारी जो वृत्ति हमसे संतानोत्पत्ति कराती है, हमारी उसी वृत्ति के कारण दुनिया का एक बड़ा हिस्सा अभी भी निर्धन है। दोनों ही वृत्तियाँ किस बात की हैं? दोनों ही वृत्तियाँ हैं व्यक्तिगत सुख की, “मुझे व्यक्तिगत सुख मिलना चाहिए, दूसरों का, दुनिया का जो होता हो, होता रहे”, और तुम्हें अगर व्यक्तिगत सुख मिलना ही चाहिए, तो फिर तुम क्यों चाहोगे कि किसी और का भला हो? तुम तो अपने व्यक्तिगत सुख को ही लगातार बढ़ाने की कोशिश करोगे न? उसका नतीजा? उसका नतीजा ये है कि दुनिया के करीब सौ लोगों के पास उतनी ही संपदा है जितनी दुनिया के निर्धनतम कई दर्जन देशों के पास है। दुनिया के मुट्ठी-भर लोगों के पास उतनी ही संपदा है जितनी दुनिया के निर्धनतम कई देशों के पास…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org