भीतर फ़ौलाद चाहिए?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मैं तेईस साल का हूँ और अभी मैं यू.पी.एस.सी. में फॉरेस्ट सर्विसेज़ की परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ। अभी मैं घर पर बैठा हूँ और पापा से पैसे लेता हूँ। आपको मैं डेढ़ साल से सुन रहा हूँ, और जीवन में स्पष्टता आ रही है, सहजता आ रही है, जीवन सरल बन रहा है। मैं देख पा रहा हूँ कि जीवन में मैं जो पहले करता था वो अब नहीं करता, जो मैं पहले चीज़ें देखता था वो अब नहीं देखता। लेकिन आचार्य जी वो जानी हुई बातें आलस और अनुशासन की कमी के कारण कर्म में नहीं उतर पाती हैं। मैं अपना जीवन नहीं बदल पा रहा हूँ और वो जो अंदर होता है न, वह फौलाद नहीं आ पा रहा है। जीवन को मैं शक्तिशाली बनाना चाहता हूँ, मुक्त बनाना चाहता हूँ और अपने दम पर मैं जीना चाहता हूँ तो वो चीज़ें नहीं आ पा रही हैं। उसकी वजह से मुझे दुःख भी होता है ।

आचार्य प्रशांत: कोई बड़ी चुनौती चाहिए। भीतर फौलाद तभी आता है जब जीवन फौलाद से टकराता है। जब तक सामने कोई बड़ी समस्या नहीं होगी तुम्हारे भीतर ताकत बस सोई रहेगी, जगेगी नहीं।

और समस्या तुमको आविष्कृत नहीं करनी है। समस्या तुमको ज़बरदस्ती खड़ी नहीं करनी है। समस्याएँ तो होती ही हैं हम उनसे मुँह चुराते हैं क्योंकि पता होता है कि समस्याओं का सामना करने का दम नहीं है। दम विकसित करना हो तो जिन समस्याओं से मुँह चुराते रहे हो उनसे जूझ जाओ। मार पड़ेगी, चोट लगेगी, दर्द होगा लेकिन ताकत विकसित हो जाएगी। अपनी कई समस्याएँ तो तुमने अभी खुद ही गिना दी हैं और ये सब इस काबिल हैं कि इनसे संघर्ष किया जाए। करो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org