भीतर कुछ बैठा है जो मर नहीं रहा, जो जिए जा रहा है

वो जब तक जी रहा है, कर्म को भी जीना चाहिए।

नहीं तो अजीब स्थिति हो जाती है, जो कर्म करने वाला है वो ज़िंदा है, कर्म खत्म हो गया!

कर्म करने वाला फिर तड़पेगा!

कर्म करने वाला अपने ही ऊपर कर्म कर ले।

फिर कर्म और कर्म करने वाला जब खत्म होंगे तो एक साथ खत्म होंगे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org