भीतरी पोषण स्वयं को देते रहना!

कितना भी खा-पी लो
पर भीतर
जो सूक्ष्म मन है
वो तड़पता ही रहता है
क्योंकि
ये खाना-पीना, कपड़ा-लत्ता
उसे तृप्त नहीं कर पाते।

उसे तो तृप्त करती है
उपनिषदों की बात,
संतों के गीत,
जिनके बिना
भीतर से आप बड़े
शुष्क रहेंगे, मुरझाए।

भीतरी पोषण स्वयं को देते रहना!

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org