भावुकता का क्या करूँ
प्रश्न: सर मैं सॉफ्ट-हार्टेड हूँ। मैं बहुत जल्दी भावुक जो जाती हूँ। क्या करूँ?
वक्ता: यह ध्यान से समझना होगा कि जो भी भाव उठते हैं उनके पीछे एक विचार होता है। बिन विचार के भाव नही आ सकता। हम लोग भाव को बहुत ज़्यादा महत्व दे देते हैं। हम सोचते हैं कि उसमें कोई बड़ी बात है। कोई बहुत पूज्यनीय चीज़ है। कोई भावुक हो जाता है तो हमें लगता है कि कोई विशेष बात हो गयी। किसी के आँसू देख लेते हैं तो हम बेचैन हो जाते हैं। हमें लगता है आँसू सच्चाई का सबूत हैं। दो-तीन बातें हैं, इनको ध्यान से देखना और फिर उनको आपस में जोड़ना।
१. हर विचार बाहर से आता है।२. भाव विचार से उठता है।
अब इन दोनों को मिला दो तो क्या बनेगा?
सभी श्रोतागण: भाव, बाहर से आ रहा है।
वक्ता: भाव कैसा भी हो सकता है। गुस्से का, रोने का! तो अबसे जब भी भावुक हो जाओ, किसी भी बारे में, तो अपने आप को यह बोलना, ‘बाहरी है यह बात’। तुम्हारी अपनी नहीं है। किसी और की है। अपना-अपना मन होता है, अपना इतिहास होता है, अपनी-अपनी परवरिश होती है। एक आदमी और दूसरे आदमी का मन एक जैसा नहीं होता। लड़के और लड़की का मन एक जैसा नहीं होता। लेकिन एक बात हमेशा सच होती है कि मन पर प्रभाव बाहरी ही होते हैं। और भाव भी इसलिए बाहरी भी हो गया। अब से जब भी भावुक हो, तो अपने आप से बात करना। अपने आप से थोड़ी सी दूरी बनाना और बात करना। कहना, ‘तू फिर भावुक हो रहा है और भावुक होने का मतलब है कि कोई और तुझ पर नियंत्रण कर रहा है।’ इसका यह मतलब नहीं है कि इस से भाव तुरंत ख़त्म हो जाएगा। लेकिन उसका जो ज़ोर है…