भावनाएँ, विचार, और स्त्री मन

औरतों से मुझे जितनी शिकायत है, उतना ही उनको लेकर दुख भी है। उनको देखता हूं, बहुत दुख लगता है, और शिकायत इस बात की है कि वो अपने दुख का कारण स्वयं है। औरतों की जो खराब हालत है, उसका कारण वो खुद है। भावना को वो अपना हथियार समझती हैं, देह को वो अपनी पूंजी समझती हैं। देह सजाएंगी, संवारेंगी, भावनाओं पर चलेंगी, और सोचती है कि हमने ये बड़ा तीर मार दिया।

इन्हीं दो चीजों के कारण — देह, माने तन और भावना, माने मन — वो इतिहास में लगातार पीछे रही है, गुलाम रही हैं। जबकि स्त्री को प्रकृतिगत कुछ विशेषताएं मिली हुई हैं जो पुरुषों के पास नहीं होती। धैर्य स्त्री में ज्यादा है, महत्वाकांक्षा स्त्री में कम होती है। ये बड़े गुण हैं। अगर स्त्री संयत रहे, तो खुलकर उड़ सकती है, आसमान छू सकती है। पर वो इन्हीं दो की बंधक बन कर रह जाती है: तन की और मन की। “आंचल में है दूध” माने तन और “आंखों में है पानी” माने मन, भावनाएं। बस इन्हीं दो की बंधक है वो। यही दो काम करने हैं उसको: दूध और पानी, दूध और पानी। उसी को मैंने उस लेख में लिखा है कि औरत दो ही जगह पाई जाती है: बेडरूम और रसोई। बेडरूम माने दूध और रसोई माने पानी। और इसी को वो अपना फिर बड़ा बल समझती है।

वास्तव में स्त्री में जो एक विशेष गुण होता है, वो उसे पुरुषों से बहुत आगे ले जाए। वो गुण उसमें होता है समर्पण का। औरत पुरुष की अपेक्षा थोड़ी भोली होती है। एक बार वो समर्पित हो गई किसी चीज़ के प्रति, तो समर्पित रहती हैं। ये बड़ी बात है। इस गुण के कारण वो किसी भी काम में बहुत आगे जा सकती हैं क्योंकि निष्ठा से करती है काम, मैंने देखा है। जितनी निष्ठा से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org