भारतीय युवाओं में अपनी संस्कृति के प्रति अज्ञान और अपमान क्यों?

भारतीय संस्कृति भारतीय धर्म से अलग नहीं है। वास्तव में संस्कृति कहीं की भी वहाँ के धर्म से अलग हो ही नहीं सकती और भारतीय धर्म है ‘वैदिक धर्म’, वेदों का शीर्ष हैं उपनिषद। लेकिन उपनिषदों की जो बातें हैं वो कुछ लोगों के लिए थोड़ी क्लिष्ट हैं समझने में, जो अभी परिपक्व बुद्धि के ना हों, उनके लिए वो बातें ज़रा जटिल हैं, तो सब तक उपनिषदों का, माने वेदान्त का, संदेश साफ-साफ पहुँच सके इसके लिए पुराण हैं और इतिहासकाव्य हैं जैसे रामायण हो गयी, महाभारत हो गयी, इन सब में कहानियाँ हैं। पुराण हमारी कहानियों से भरे हुए हैं और वो कहानियाँ जन-साधारण में प्रचलन में आ गयी हैं। अभी हालत ये है कि हमारे पास बस वो कहानियाँ हैं, उन कहानियों का मर्म समझा देने वाली कुंजी हमारे पास नहीं है।

ये ऐसी-सी बात है जैसे आपके पास किसी ऐसी भाषा का कोई गीत पहुँच जाए जो भाषा आप समझते ना हों और वो गीत आप गाए-गुनगुनाए जा रहे हैं संस्कृति के नाम पर, लेकिन उसका अर्थ आपको पता ही नहीं। क्योंकि उस गीत का अर्थ करने वाली जो कुंजी थी वो खो गयी आपकी। तो अब आप अपने स्वर्णिम अतीत की बात करते-करते उस गीत को सहेजे रहेंगे, उसको बड़ा सम्मान देंगे, अपने ख़ास अवसरों पर उसको गाएंगे-गुनगुनाएंगे। लेकिन कोई पूछेगा कि भाई इसका मतलब क्या है, आप बता नहीं पाएँगे। और कोई पूछेगा इस गीत से तुम्हारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर फर्क क्या पड़ रहा है, इस गीत से तुम्हारा जीवन बेहतर कैसे हो रहा है, आपके पास कोई उत्तर नहीं होगा। बल्कि आप पूरे जगत में उपहास के पात्र बनेंगे और होता भी यही है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org