भय से छुटकारे का सरल उपाय
ब्राह्यान्तराणां शत्रूणां स्वभावं पश्य भारत।
यन्न पश्यति तद्भूतं मुच्यते स महाभयात् ॥
-कामगीता (श्लोक ८)
अनुवाद: भारत! बाहरी और भीतरी शत्रुओं के स्वभाव को देखिए-समझिए। (ये मायामय होने के कारण मिथ्या हैं, ऐसा निश्चय कीजिए)। जो मायिक पदार्थों को ममत्व की दृष्टि से नहीं देखता, वह महान भय से छुटकारा पा जाता है।
प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, यहाँ सरल शब्दों में भयमुक्ति या जीवनमुक्ति के बारे में जो कहा गया है, उस बात को अह्म को आसानी से आत्मसात करने में क्यों समस्या होती है?
आचार्य प्रशांत: जिसको हम भयमुक्ति कहते हैं या जीवनमुक्ति कहते हैं वो वास्तव में अह्म मुक्ति होती है।
अह्म ही भय है।
अह्म ही सामान्य जीवन है।
अह्म की दृष्टि से देखें तो भयमुक्ति या जीवनमुक्ति उसके लिए जीवन का अंत होती है, उसके लिए मृत्यु समान होती है और मृत्यु से कौन नहीं घबराएगा? कौन है जो मृत्यु को सहर्ष स्वीकारेगा? आमंत्रित करेगा? इसलिए अह्म इन सीधी बातों को जानते समझते भी अस्वीकार करता है, कुछ कुतर्क करता है। अह्म कहता है, "मैं जिंदा हूँ।"
ये उसकी मूल धारणा है।
"मैं हूँ।
मैं अभी जिस भी स्थिति में हूँ, जो कुछ भी अनुभव करता हूँ,
अच्छा हूँ,
बुरा हूँ,