ब्रह्मविद्या को सबसे कठिन विद्या क्यों कहा जाता है?

आचार्य प्रशांत: छठा, सातवाँ और बाईसवाँ श्लोक उद्धृत कर रहीं हैं। कह रही हैं कि इंद्रियाँ, विषय, मन, बुद्धि, अहंकार, सुख-दु:ख, चेतना, धृति, ये सब क्षेत्र हैं और इनका दृष्टा है पुरुष। लेकिन यह पुरुष प्रकृतिस्थ है इसीलिए यह प्रकृति का भोग करता है, जन्म लेता है और मरता है। ठीक।

तो कह रहीं हैं, “यह सब पढ़कर तो मुझे यह समझ में आ रहा है कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। यह पुरुष इतना पगलाया क्यों घूम रहा है, आचार्य जी?” और आगे पूछ रहीं हैं, “ध्यान, भक्ति, योग, ज्ञान, इन सबका कोई गुण नहीं है क्या इस पुरुष में? तो ये सब क्या बेकार ही गए?”

पुरुष पगलाया क्यों घूम रहा है? पुरुष ही जाने, मैं क्या बताऊँ! उसको प्यार हो गया है कसम से, और क्यों पगलाता है कोई। (हँसी) प्रकृति है इतनी कट्टो! आपने लिख दिया बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना, पुरुष को थोड़े ही लग रहा है कि शादी बेगानी है। उसकी आँखों में तो बंदनवार है और कानों में शहनाई है। वो तो अपनी शादी देख रहा है।

अरे, कभी कोई दिखाई देती है रूपवती तो उसको देख करके यह थोड़े ही तुम्हें सपना आता है कि किसी बेगाने से इसकी शादी हो रही होगी, आता है क्या? हक़ीक़त भले यही हो कि कोई संभावना ही नहीं है कि उससे तुम्हारा विवाह होगा, लेकिन कभी यह ख़याल आया है? कोई दिखाई दी है कामिनी, तो उसे देखते ही कभी यह हुआ है कि तुम्हें यह दृश्य उभरा हो कि देखो, इसकी शादी हो रही होगी किसी बहुत आकर्षक, मजबूत नौजवान के साथ, ऐसा कभी आता है? नहीं आता न? फिर उसे कुछ समझ में नहीं आता। क्या अपना, क्या पराया!

और इसका कुछ कारण नहीं बता सकता मैं आपको। आप पूछेंगीं क्यों? क्यों? क्यों? तो मैं कहूँगा – वृत्ति, विकार, दोष। ये तो शब्द हैं। मैं कह दूँगा कि वृत्ति होती है आदमी की फिसल जाने की। आप उसमें और गहरा घुसेंगी तो मैं कहूँगा कि प्रकृति है। देखो, प्रकृति चाहती है कि वह बनी रहे, मैं फिर आपको इवॉल्यूशनरी थ्योरी (विकासवादी सिद्धांत) समझा दूँगा। उससे क्या होगा? अब्दुल्ला के कान में शहनाइयाँ तो बज ही रहीं हैं।

बात तो तब है जब प्रकृति को देखें आप और कहें कि प्रकृति है। सुंदर है फूल, लेकिन भोगने के लिए नहीं है। यह नहीं कि फूल देखा फट से ले करके बाल में लगा लिया। यह तो हो गई न अब्दुल्ला वाली बात। फूल खिला था प्रकृति के भीतर ही रमण करने के लिए, उसमें परागकण थे, फूल फल बनना चाहता था, फूल बीज बनना चाहता था और आपने क्या कर लिया? उस बेगाने खेल में आपने हस्तक्षेप कर दिया और फूल उठा करके अपने जूड़े में लगा लिया। इसी को कहते हैं न बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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