बोध के लिए अभी कितनी यात्रा बाकी है?

प्रश्न: आचार्य जी, क्या यह पता लगाया जा सकता है कि बोध की प्राप्ति में अभी कितनी यात्रा बची है, या किसकी कितनी यात्रा हो चुकी है?

आचार्य प्रशांत जी: यात्रा लम्बी किसी की नहीं होती है। समझाने वालों ने ऐसा बोला, मैं भी ऐसा ही उदाहरण रख देता हूँ।

तो शायद हमने मन में नमूना, मॉडल, ऐसा बनाया है कि शायद एक बहुत लम्बी यात्रा है जो पूरी करनी है, और मुक्ति आखिर में उसके शिखर पर जाकर होती है, अंत पर जाकर होती है। ऐसा नहीं है। मामला थोड़ा-सा दूसरा है।

मुक्ति तुम्हें दिख भी जाती है, मिल भी जाती है।

पर तुम अपनी मुक्ति का उपयोग करके फिर अमुक्त हो जाते हो — जैसे बच्चा हो कोई छोटा, माँ उसको बिलकुल नहला दे, साफ़ कर दे बिलकुल।

पहले उसके शरीर पर धूल लगी हुई थी, बालों में मिट्टी-धूल थी। तो माँ ने पकड़ा और रगड़-रगड़ कर दिया, नहला दिया। वो नहा-धोकर बाहर निकलता है, गीला, और जाकर मिट्टी में लोट आता है। तो पहले मिट्टी ज़्यादा थी, या अब ज़्यादा है। तो हर शिविर में ऐसा होता है कि सब नहा-धो लेते हो, सबका स्नान हो जाता है, लेकिन तुम शिविर के बाद क्या करोगे मैं क्या बताऊँ?

इसी को मैं ऐसे भी कहता हूँ कि जैसे उस पार है मान लो वो देस जहाँ जाना होता है, कबीर साहब जिसको ‘अमरपुर’ कहते हैं, उधर है ‘अमरपुर’। इधर से उधर जाने के लिये एक पुल है। सबके अपने-अपने पुल हैं, क्योंकि सब अलग-अलग व्यक्तित्वों के साथ जी रहे हैं। तो तुम्हारे दोस्त का, या पथ-प्रदर्शक का काम होता है कि तुम्हें पुल पार करा दे। पुल तो पार कर जाते हो, तुमने बहुत बार पुल पार किए हैं, लेकिन उसी पुल का उपयोग करके तुम वापिस आ जाते हो।

ज्ञान के तल पर बड़े-बड़े ऋषि मुनियों को भी उतना ही पता था, जितना तुम्हें पता है। अब ये बात तुम्हें गर्व भी दे सकती है, और तुम्हें डरा भी सकती है। तुम्हें ये बात डरा सकती है कि बड़े-बड़े ऋषि-मनीषी भी जितना जानते थे, हम उनसे कम नहीं जानते। ये बात बहुत खौफ़नाक है, क्योंकि जितना कुछ भी शब्दों के द्वारा, कानों के द्वारा, बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है, वो तुम जान चुके हो। कोई सूत्र नहीं बचा अध्यात्म का जो अब तुम्हारे सामने प्रतिपादित होना बाकी हो। सब खोल दिया गया है।

अंतर बस ये है कि — उन्हें जो पता चला, वो मात्र उसी में जीते थे। तुम्हारे पास और बहुत सारी चीज़ें हैं।

ऋषियों के पास जो है वो तो है तुम्हारे पास, पर तुम्हारे पास मात्र वही नहीं है, जो ऋषियों के पास है। तुम्हारे पास और भी बहुत कुछ है। तुम उस छोर पर तो पहुँच जाते हो, पर तुम्हें याद आता है कि इस छोर पर भी तुम्हारे बहुत काम-धंधे हैं। ऋषियों के पास इस छोर का कुछ

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org