बोधशिविर से फ़ायदा क्या है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बोध-शिविर से फायदा क्या है?

आचार्य जी: आदमी, शरीर के ऊपर चढ़ी हुई समाज की परत है। जिसको अपना जन्म कहते हो, वो शरीर के साथ होता है। और फिर समाज उस पर एक परत और चढ़ा देता है। ये दोनों ही परतें तुम्हारा दुःख हैं। ये दोनों ही परतें तुम्हें ढकती हैं। जो जैविक परत है, जिसे हम देह कहते हैं, वो भी, और जो सामाजिक परत है, जिसे हम मन कहते हैं, वो भी।

यहाँ पर जब आते हो, तो सीधा संपर्क उससे होता है जो कि तुम्हारी दैहिक परत है, ‘प्रकृति’। देह प्रकृति है। यहाँ आ कर, थोड़ी देर के लिए समाज को भूल जाते हो। समाज को जब भूलते हो तो दो परतों में से कम-से-कम एक से मुक्त होते हो। यहाँ आ कर तुम्हारे सामने हैं, नदी, छोटे-मोटे जानवर, पेड़, आसमान खुला, रेत; ये सब ‘तुम’ हो। ये सब तत्व हैं जिनसे तुम्हारा शरीर निर्मित है। अब यहाँ पर आ कर के तुम्हें सामजिक संस्कार बहुत याद नहीं आएँगे। तो तुम अपने केंद्र के थोड़ा पास चले। समझ लो केंद्र है, केंद्र ऊपर चढ़ी हुई शरीर की परत है, और उसके ऊपर भी चढ़ी हुई, मन की, सामाजिक संस्कारों की परत है। यहाँ जब आते हो तो उन संस्कारों से हट कर के शरीर के करीब आते हो, प्रकृति के करीब आते हो।

प्रकृति के करीब आने का अर्थ होता है, केंद्र के करीब आना।

इसलिए प्रकृति के करीब आने का अर्थ होता है परमात्मा के करीब आना।

प्रकृति, परमात्मा नहीं है, लेकिन प्रकृति से जो जितना दूर जाएगा, परमात्मा से उतना ही दूर जाएगा। परमात्मा, तुम्हारा केंद्र है। सत्य तुम्हारा केंद्र है। केंद्र के परितः जो पहली…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org