बोधग्रंथों को पढ़े बिना ध्यान करने की कोशिश

जो जीवन का पूरा बदलाव चाहते हों,
उनके लिए है ध्यान।

जिन्हें जीवन का झूठ दिखने लगे,
उनके लिए है ध्यान।

प्रचलित मेडिटेशन आदि को ध्यान न कहें।

जान देने से ज़्यादा कठिन है ध्यान।
जान देने में सिर्फ़ जिस्म टूटता है,
ध्यान में वो टूटता है जिसे आप ‘मैं’ कहते हो।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org