बेबसी का रोना मत रोओ, अपने स्वार्थ तलाशो
प्रश्नकर्ता: गुरु द्रोण की स्थिति और विवशता को मैं अपने जीवन से जोड़कर देख रहा हूँ। वे जानते हैं कि सच क्या है, फिर भी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अन्य लोभों के कारण कौरवों के साथ हैं। युद्ध के समय जब दुर्योधन बार-बार उन्हें जली-कटी सुनाकर उकसाता है तो वह अपने प्रयास में सफल भी हो जाता है। यह तब है जब द्रोणाचार्य को यह अवगत है कि वे ग़लत के साथ खड़े हैं।