बेटा, किस क्लास में हो? गूगल करना नहीं आता?

प्रश्नकर्ता: ग्लोबल-वार्मिंग (वैश्विक ऊष्मीकरण) तो पिछले सौ साल में भी नहीं पिछले पचास साल में ही ज़्यादा हुई है पर नॉन-वेज (माँसाहार) तो पंद्रह-हज़ार साल से खाया जा रहा है तो फिर आप क्यों बोलते हैं कि ग्लोबल-वार्मिंग और नॉन-वेज (माँसाहार) में कोई लिंक (संबंध) है?

आचार्य प्रशांत: बेटा, किस क्लास (कक्षा) में हैं आप? पहली बात तो जिसको आप नॉन-वेज (माँसाहार) बोल रही हैं वह सीधे-सीधे माँस है, तो हम उसे बोलेंगे — माँस। वह पंद्रह-हज़ार साल से नहीं खाया जा रहा, वह डेढ़-लाख साल से खाया जा रहा है, वह पंद्रह-लाख साल से खाया जा रहा है, वह डेढ़-करोड़ साल से खाया जा रहा है। कौन खा रहा था? खाने वाला जो था वह जंगल का प्राणी था। वह पूरे तरीके से प्रकृति के नियमों के अधीन था। जब वह प्रकृति के नियमों के अधीन था तो उसकी बहुत ज़्यादा तादाद, संख्या भी नहीं बढ़ी थी। वह प्रकृति के नियमों के अधीन था उसकी बहुत तादाद नहीं बढ़ी थी, वह जानवर था एक, और जानवर तब खाते थे, जानवर आज भी खा रहे हैं। आदमी भी जंगल में रहता था तो कुछ हद तक वह माँसाहारी था। यह भी मत कहिएगा कि आदमी जब जंगल में रहता था तो पूरी तरह से माँसाहारी था, पूरी तरह माँसाहारी नहीं था वह लगभग पूरी तरह शाकाहारी था।

आपको अगर जंगल भेज दिया जाए तो आपके लिए ज़्यादा आसान क्या होगा? फल खाना या हिरण को दौड़ाकर के मार कर खाना? तो आपको क्यों लगता है कि जो हमारे पुरखे थे जब वो जंगल में रहते थे तो दौड़ा-दौड़ा कर के हिरणों को मारते थे और हाथियों को मारते थे और खा लेते थे? जहाँ तक दौड़ाकर के पकड़ने और खाने की बात है, आपको एक मुर्गा ही खाना…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org