बुरे की क्या परिभाषा है तुम्हारी?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ऐसा लगता है कि किसी घोड़े पर बैठा हुआ था, और घोड़े को अपना शरीर जान रहा था। तो अब घोड़े से उतर गया हूँ। लेकिन घोड़ा अपनी रफ़्तार से चल रहा है, और मैं रुका हुआ हूँ। सारा बैलेंस (संतुलन) बिगड़ा हुआ लगता है। कभी लगता है दोबारा कोशिश करूँ, पर कोशिश की भी नहीं जा रही है। कोशिश करना भी नहीं चाह रहा हूँ।
आचार्य जी, संतुष्ट नहीं हूँ, क्योंकि बेचैनी ही दौड़ा रही थी। जब संतुष्ट हूँ तो बिज़नेस…