बुद्ध के किस्सों पर कम, अपने जीवन पर ज़्यादा ध्यान दो

बुद्ध के साथ जैसे हुआ, वैसे थोड़ी होगा तुम्हारे साथ और बुद्ध के साथ जैसे हुआ वो तुम कभी पता भी नहीं लगा पाओगे। लोगों के तरीके हैं किस्सा बताने के, कहानी बताने के। तुम्हें पता कैसे लगेगा कि वास्तव में क्या हुआ था?

अध्यात्म में रुचि है या किस्सों में? मुक्ति चाहिए या किस्से चाहिए?

एक बात बिल्कुल साफ़-साफ़ समझ लो, जिन्हें तुम महापुरुष कहते हो, बुद्ध पुरुष कहते हो, ज्ञानी, मुक्त पुरुष, जैसा भी तुम नाम देना चाहो, नहीं कभी पता लगा पाओगे कि वहाँ वास्तव में क्या हुआ।

मुक्ति का अर्थ ये थोड़े ही होता है कि जिस चीज़ ने किसी और को बाँध रखा है तुम्हें उससे मुक्त होना है।

दो ही चीज़ें हैं जो फँसाती हैं, तन और मन। मन आकृष्ट होता है कंचन की ओर, तन आकृष्ट होता है दूसरे तन कि ओर और बुद्ध ने देखा कि मैं तो दोनों ही जगह फँसा हुआ हूँ। तुम बताओ ना तुम्हें क्या बाँधे हुए है? तुम उसकी परवाह करो।

उन्होंने भी तो अपने जीवन पर नज़र डाली थी ना, या वो किसी और का जीवन देख रहे थे? वो सब तुम्हारे साथ दुबारा नहीं होने वाला। तुम्हारे साथ जो होगा वो बिल्कुल पहली बार होगा और नया होगा। तुम्हें भी जो मुक्ति मिलेगी उसके साक्षी सिर्फ़ तुम होगे। किसी को न जता पाओगे न बता पाओगे।

जब भी किसी को पाओ कि वो अपने बुद्धत्व के वैसे ही लक्षण प्रचारित कर रहा है जैसे सदियों से रहे हैं, तो समझ जाना ये आदमी नकलची है और कुछ नहीं, क्योंकि जब होता है, जहाँ होता है, पहली बार होता है। सच्चा तो पहला होता है। उसकी पहचान नहीं हो सकती। उसकी गवाही तो सिर्फ़ तुम्हारी साफ़ आँखें दे सकती हैं।

बहुत आसान है किसी को प्रभावित कर देना। चार श्लोक बोलो, गाड़ी को वाहन बोलो, पानी को जल बोलो, हो गया। पुनरुक्ति नहीं होती इन चीज़ों की।

जितने ब्रह्मज्ञानी यहाँ हुए हैं उतने कहीं और हुए हैं? और जितनी पिटाई भारत की हुई है उतनी किसी और की हुई है? तुम्हें सीधा सम्बन्ध नहीं दिखाई देता? ये अधिकाँश लोग जो खुद को ब्रह्मज्ञानी बता रहे हैं, वो सिर्फ़ पुराने की नकल कर रहे है। वास्तविक ब्रह्मज्ञानी तो बिल्कुल एक नयी, मौलिक और असली जिंदगी जिएगा। उसकी ज़िन्दगी की तुम किसी पुरानी चीज़ से तुलना नहीं कर पाओगे।

इस देश ने बहुत बड़ी कीमत अदा करी है इस बेवकूफी की जो शुरू भ्रम से होती है और अंत जिसका ढोंग पर होता है। अभी सिर्फ़ भ्रमित हो, आगे जाके ढोंगी हो जाओगे।

अध्यात्म के क्षेत्र में एनलाइटनमेंट से बड़ी बीमारी दूसरी नहीं है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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