बुद्धि नहीं, बुद्धि का संचालक महत्वपूर्ण है
प्रश्नकर्ता: बुद्धि परा प्रकृति है। तो अब यह कैसे जानें कि इस समय जो हम सुन या समझ रहे हैं तो मेरी बुद्धि किस दिशा में है? इस समय स्थिति ऐसी है कि डर भी लग रहा है, आगे कुछ ज़्यादा समझ नहीं आ रहा है और बेचैनी भी रहती है।
आचार्य प्रशांत: बुद्धि भी प्रकृति के ही अंतर्गत आती है, इससे बुद्धि की उपयोगिता कम थोड़े ही हो गई। कृष्ण कह रहे हैं, अपरा प्रकृति है और परा प्रकृति है। फिर आप चौंक जाते हैं जब वो इन्हीं दोनों प्रकृतियों में बुद्धि को भी, अहंकार को भी शामिल कर लेते हैं, क्योंकि आमतौर पर हमारा मानना यह होता है कि हम तो प्रकृति से कुछ आगे के हैं, अपने-आपको…