बुद्धि को चाहिए तो कृष्ण ही

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |
न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् || २, ६६ ||

न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस आयुक्त मनुष्य के अंतःकरण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्य को शांति नहीं मिलती और शान्तिरहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है?
—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ६६

प्रश्नकर्ता: इस श्लोक में निश्चयात्मिका बुद्धि का उल्लेख है। इसे हम अपने में कैसे लाएँ? ये किन कारणों से नहीं होती?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org