बुद्धि के तीन तल

बुद्धि का जो गुण है वही बुद्धि का तल है, एक गुण ही बुद्धि का एक तल है। एक है सतोगुणी बुद्धि, वो बुद्धि का उच्चतम तल है, रजोगुणी बुद्धि मध्यम तल है और फिर तमोगुणी बुद्धि निचला तल है।

बुद्धि प्रकृति का ही एक तत्व है — मन, बुद्धि, स्मृति, चित्त, अहंकार, शरीर ये सब प्राकृतिक है। जो कुछ भी प्राकृतिक है वो सदा इन्हीं तीन गुणों के सयोंग से ही बना होता है। उसे सयोंग भी कह सकते हैं या आप कह सकते हैं कि वो तीन गुणों के आपसी वैषम्य से बना होता है, इन तीन गुणों की आपसी प्रतिक्रियाओं से बना होता है।

जब तक आप प्रकृति के क्षेत्र में है, गुण तो तीनों मौजूद रहेंगे, एक का आधिक्य हो सकता है। ये बात बुद्धि पर भी लागू होती है, किसी व्यक्ति में सतो गुणी बुद्धि होती है, किसी में रजोगुणी और किसी में तमोगुणी। और ये प्राकृतिक नहीं होती, ये चुनना होता है।

रजोगुण और तमोगुण दोनों दुख दाता होते हैं, दोनों में एक क्रेंदीय बात होती है, अज्ञान। बस रजोगुण सक्रीय होता है, तमोगुण निष्क्रिय होता है। अज्ञान का मतलब ज्ञान का अभाव नहीं होता। अज्ञान का मतलब होता है गलत ज्ञान, झूठा ज्ञान। मन खली नहीं रह सकता, मन में हमेशा ज्ञान रहेगा, वो ज्ञान या तो सही हो सकता, मुक्ति देने वाला, या वो झूठा हो सकता है, भ्रम देने वाला। तो ये जो रजोगुणी, तमोगुणी बुद्धि होती है, ये झूठे ज्ञान पर आश्रित होती है।

सच्चे ज्ञान से तमोगुणी को खतरा होता है कि उससे उसका प्रमाद छीन जाएगा, कर्ताभाव छीन जाएगा। प्रमाद में एक सुख है, प्रमाद तुम्हें जीवन के हकीकत से काट देता है, प्रमाद तुम्हें अनुमति दे देता है…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org