बीमारी को बीमारी न मानना ही बीमारी है
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प्रश्न: आचार्य जी, अपने आप को इस दिशा में ले जाना। आपने तो कहा इस चीज़ का अनुसरण करो, लेकिन मैं ये समझता हूँ, ये आसान काम नहीं है।
कौन चाहता है बुरा बनना? कोई नहीं चाहता है बुरा बनना। विरला कोई होगा जो बोले, “नहीं, मैं खराब हूँ। खराब बनना चाहता हूँ।” हर आदमी चाहता है कि वो अच्छा करे, उसको लोग पसंद करें, उसकी अच्छाईयों को। लेकिन उस रास्ते पर, मुझे लगता है नब्बे प्रतिशत लोग चल नहीं पाते हैं। मुझे लगता है कि हम किसी वजह से लाचार हैं।
तो मैं ये चाहता हूँ कि आप बताएँ कि हम रास्ते पर कैसे अपने को धीरे-धीरे ले के आएँ? ये कोई रात भर में तो होगा नहीं, जादू तो है नहीं कि आपने बोल दिया, और हमने कर दिया, और कल से हो गया। ये नहीं होने वाला। अनुशाषण से लाना है, कैसे लाना है? छोटे-छोटे कदम — जैसा आपने बोला।
आचार्य प्रशांत: आपने कहा, “नब्बे प्रतिशत लोग कर नहीं पाते, चाहते हुए भी।”
प्र: ये तो विचार है। हो सकता है मैं गलत हूँ।
आचार्य जी: नहीं, ठीक कह रहे हैं आप, ऐसा ही है। आप तथ्यों को देखें तो ऐसा ही है। नब्बे से बल्कि ज़्यादा ही होंगे। नहीं, चाहते सभी हैं, बढ़िया कहा आपने कि बुरा कौन बनना चाहता है। कोई बुरा नहीं बनना चाहता, कोई भी भुगतना नहीं चाहता।
एक दुर्घटना हो गयी है। दुर्घटना ये है कि हमने एक झूठ को सच मान लिया है। अगर आप को ये पता ही हो कि आप तकलीफ में हैं, तो आपके पास पूरा बोध है, पूरी शक्ति है, उस तकलीफ से मुक्त हो जाने की। क्योंकि तकलीफ में कोई जीना नहीं चाहता। लेकिन आदमी के साथ एक विचित्र स्थिति है। मैं उसी को दुर्घटना का नाम दे रहा हूँ। वो स्थिति ये है कि हम तकलीफ में होते हैं, पर उसे तकलीफ का नाम नहीं देते, हम उसे कोई खूबसूरत नाम दे देते हैं। तो तकलीफ कायम रह जाती है।
एक बार आप ये मान लें कि आप जैसे हैं, जिस पल आप जहाँ बैठे हुए हैं; मान लीजिये आप ये स्वीकार कर लें कि वहाँ आपको तकलीफ है, कुछ गड़ रहा है या कुछ टेढ़ा है, तो आप वहाँ से हट जाएँगे। हटने के तमाम रास्ते मौजूद हैं। ऊपर कुर्सी है, या अन्य जगह स्थान है, आप जा सकते हैं।
प्र: मगर इतनी देर से मेरे पैरों में दर्द हो रही है, मैं तो बैठा हुआ हूँ। तो ये तो गलत है, तकनीकि रूप से ये गलत है।
आचार्य जी: पैरों में दर्द हो रहा हो, और आपको पता हो कि उस दर्द से ज़्यादा मूल्यवान कुछ और है। आप जानते हैं, वो दर्द है, आप दर्द को कोई और नाम नहीं दे रहे। पर आपको पता है कि दर्द से ज़्यादा मूल्यवान बोध है, तब दर्द को बर्दाश्त करना एक बात है। और एक दूसरी बात ये होती है, कि आप दर्द को दर्द कह ही नहीं रहे, आप दर्द को कह रहे हैं कि ये तो…